Saturday, July 26, 2008

26th july opening poem

अब हम क्या लिखे कागज़ पर
जब बातें तुम सारी आंखों से करती हो
कागज़ का टुकडा तो फिर भी हर कोई पढ़ लेता हैं
पर नज़रो की ये बात जब तू दिल से पढ़ती हैं
अब हम क्या लिखे उस कागज़ पर
मैं हर रोज़ मेरे हमसफ़र का नाम उस पर लिखता जाता हूँ
और वो कोरा कागज़ कहता हैं कि
हाँ शायद मैं भी मेरे महबूब को बहुत याद आता हूँ
चलो इसी बहाने सही कागज़ कलम से दोस्ती हो गई
वरना अब मैं कहाँ दोस्त बनाता हूँ
कलम जब भी चलती हैं
तेरा नाम सबसे पहले लिखती हैं
इसीलिए तो अब मैं स्कूल से निकला जाता हूँ
हर रंग तुझ पर रंग लगता हैं
पर हाय वो दुपट्टा न पूछ सिर्फ़ तुझ पर ही क्यों जंचता हैं
तेरा देखना छूना छुप कर मेरे पास आ जाना
तुझे दुनिया की तमाम लड़कियों से बहुत अलग करता हैं

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