Saturday, July 26, 2008

26th july closing poem

मेरे हमसफ़र तुझे क्या ख़बर
मेरे हमसफ़र तुझे क्या ख़बर
मैं इस नगर तू किस नगर
ये जो वक्त हैं किसी धुप छाँव सा हैं
धुप हमेशा मेरे नगर
कभी छाँव तेरे नगर
तेरी आँख से जो गिरते आंसू
उन्हें पोंछ लेते हम
गर होती तू इस नगर
पर उन आंसुओ की किस्मत अच्छी
कमबख्त वो बहते हैं तेरी आँख से जब होती तू तेरे नगर
तेरी साँसों की गर्मी सम्हालते सम्हालते
मेरे हाथ बर्फ से हो गए
पर न तुझे ख़बर न मुझे ख़बर
वो जो रास्तो को यकीं था
की एक दिन वो मेरे नगर आयेंगे
मगर वो सब रास्तेअब जाते हैं तेरे नगर
मैं अकेला अपने नगर मैं रहता हूँ
मुझे सुनने वाले हर शक्स को बेंतेहा प्यार करता हूँ
पर मोहब्बत जिससे की ना जाने वो कहाँ चली गई
रहती हैं वो किस नगर किस नगर किस नगर

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