वो लड़की भी एक अजीब पहेली थी
होठ प्यासे आँखें समंदर थी
सूरज उसको देख कर छुप जाता था
वो जब धुप मे निकलती थी
उसको बस अंधेरे से डर लगता था
जब सेहरा मे दूर कहीं एक रोशनी चमकती थी
आते जाते मौसम अब उसको डसते थे
एक दिन वो मौसम बदलने पर मौसम सी लगती थी
कभी हंसते हंसते पलकों से रो पड़ती थी
कभी रोते रोते वो हंसाने लगती थी
वो लड़की भी अजीब पहेली थी
आधी रात की सज़ा वो तारे गिनने से देती थी
बस मेरे सिवा चाँद से बातें करती थी
दूर से उजडे मन्दिर जैसा घर था उसका
वो मेरे घर को ही अपना मन्दिर कहती थी
हवा को रोक कर अपने आँचल से
बस सूखे फूल मेरे नाम के उस मन्दिर से चुना करती थी
वो लड़की एक अजीब पहेली थी
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