Friday, July 25, 2008

18th july opening poem

आइना अगर मैं बार बार देखू तो क्या ग़लत हैं
आइना मैं अगर बार बार देखू तो क्या ग़लत हैं
अगर मैं तेरे ख्यालो मे रहना चाहू तो क्या ग़लत हैं
तेरा घर माना थोड़ा दूर मेरे घर से
मैं तेरे घर की गली से बिना काम ही गुजरू तो क्या ग़लत हैं
तुम्हे आईने से इतनी मोहब्बत क्यों हैं
तेरी वो जुल्फे मुझे देख कर बिखरने लगती हैं
यार वो इतनी गुस्ताख क्यों हैं
समझता हूँ मैं तेरे ख्यालो की बातो को
फ़िर हर मौसम मे मेरे ख्याल अगर तेरी सोच के साथ बदले तो ग़लत क्यों हैं
ख्याल बदले या बदले मेरी हर बात
पर हर बात मे इन आंखों मे तेरी सूरत क्यों हैं

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