कसूर न उनका था न हमारा
हम दोनों को ही न आया रिश्तो को निभाना
वो चुप्पी का अहसास जताते रहे
हम मोहब्बत को मन ही मन छुपाते रहे
प्यार मन ही मन करते रहे
(ऐसा आप भी करते होंगे न उदयपुर )
कि प्यार मन ही मन करते रहे
पर फिर भी प्यार को सबसे छुपाते रहे
जब देखते थे किसी सागर को उफनते हुए
तब एक दुसरे का हाथ थाम लेते थे
जब रोशनी धुंधली होती थी बारिश के बाद
आंसू अपने मन ही मन बाँध लेते थे
हमे आया ही नही उसे मानना
उसे आया ही नही रोते रोते मुझे रोक पाना
जिसे जाना था वो हाथ छुडा कर चला गया
और जो अपना हैं अपना था
वो प्यार सिखाते सिखाते पास आ गया
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