Sunday, July 13, 2008

7th july opening poem

अब कुछ कहा जाता नही
दूर कोहरे मे कुछ नज़र आता नही
लोगो का मिलना कुछ पल मुस्कुराकर भूल जन
अब मेरे मन मे कोई समाता नही
एक पल मे किसी का मिलना
एक पल मे दूर हो जाना
तन्हाईयां देता हैं पर
दिल का ये दर्द अब मुझसे सहा जाता नही
तुम्हारे लिए ना रोयेंगे हम
सोच लिया था हमने
फिर इन बूंदों को आंखों से बहते हमसे रोका जाता नही
आप रेडियो के उस तरफ़ हमे सुनते हैं
देखना चाहता हूँ आप सबको
पर कोई चेहरा नज़र हमे आता नही


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