हर अपना आजकल मुझसे खफा हैं
सबकी ज़ुबां पे बस मेरी खता का सिलसिला हैं
शायद नही था मैं तेरे काबिल
(गौर फरमाईयेगा उदयपुर )
शायद नही था मैं तेरे काबिल
फ़िर कैसे कह दू कि तू बेवफा हैं
वफ़ा बेवफा मोहब्बत मे छोटी सी बात होती हैं
तू नही बेवफा तभी तो रोज़ तेरे ख्यालो से मुलाक़ात होती हैं
बेवफा कभी वफ़ा नही करते
मोहब्बत करने वाले किसी से दगा नही करते
खुबसुरतो की तो आदत होती हैं दिल लुटने की
कि खुबसुरतो की तो आदत होती हैं दिल लुटने की
ये कभी दीवानों पे रहम नही करते
काश ! काश वो तड़प तुझे भी हुई होती
मेरी प्यास तुझे भी हुई होती
कि काश वो तड़प तुझे भी हुई होती
मेरी प्यास तुझे भी हुई होती
लौट आती तु भी मेरी बाहों मे
अगर मेरी साँसों की महक तेरी साँसों मे होती
1 comment:
very beautiful poem!
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