Monday, June 30, 2008

30th june evening poem

बातो से गम कम नहीं होते
आंसुओ से दिल के कोने नाम नहीं होते
थी उम्मीद अपनो से इस दिल को कभी
पर हमेशा साथ ये हमदम नहीं होते
बेबसी हंसाने लगी खामोशिया अब हैं गूंजती
बंद कमरों मे रोने वालो के लिए मौसम नहीं होते
जब ख़ुशी हैं नाचती गाती
तो फिर क्यों हम भीड़ मे कभी खुश नहीं होते
प्यार सब रंजिशे मिटाता हैं
प्यार प्यार करना सिखाता हैं
तो क्या ऐसे दिलो मे कभी गम नहीं होते
याद तो करते हैं उनको हम रात दिन
ख्वाब मे उनके क्या कभी हम नहीं होते
हम होते हैं उनके ख्वाब मे जिस दिन
उसी रात वो सब कुछ भूल चैन से सोते हैं
ना रोते ना कुछ कहते बस नींद मे भी हंसते रहते हैं

30th june closing poem

आज सुबह हुई बारिश
हुआ क्या ये क्या बताऊ तुम्हे
मैंने कुछ पन्नो पे तेरे नाम लिखे थे
कौन मिटा गया ये क्या बताऊ तुम्हे
फूल कुछ गीले थे कुछ साँस लेते थे
फूल कुछ गीले थे कुछ साँस लेते थे
उन फूलो से उनकी साँसे उनकी खुशबु
कौन चुरा ले गया क्या बताऊ तुझको
एक रोज़ एक साया सीढियों से चलकर
मेरे पास आकर बैठा था
उस साए ने किसका नाम मेरे कानो मे गुनगुनाया
क्या कहू क्या बताऊ तुझको
कभी बारिश के होने के पहले
बारिश के होने का मतलब पता लग जाता हैं
रोज़ एक शक्स मेरे पास से गुज़र जाता हैं
मगर पता नही क्यों मुझे नज़र नही आता हैं
मैंने तमाम दोस्तों मे जाकर जिक्र तेरा कर दिया
कौन सा दोस्त चुप हो गया तेरा नाम सुनाने के बाद
ये लिस्ट बड़ी लम्बी हैं
किस किस का नाम गिनाऊ तुझको
अक्सर ऐसा होता हैं कि तेरे पास जब मैं आकर बैठता हूँ
करने को होती हैं बहुत सी बातें
कभी कुछ कह पाता हूँ
कौनसी बात छुपा जाता हूँ क्या बताऊ तुझको
ओस की कुछ बूंद गिरी थी कहीं किसी पहलु मे जाकर
बना डाली उसने एक तस्वीर पुरानी
मेरी उस पुरानी तस्वीर को चुराकर ना जाने कौन ले गया
ये क्या बताऊ तुझको

30th june opening poem

मोहब्बत किसको कहते हैं हमे तुमने सिखाया था
मोहब्बत किसको कहते हैं हमे तुमने सिखाया था
इबादत किसको कहते हैं ये भी तुम्ही ने बताया था
मगर जब हम बारिश मे भीग किसी के ख्यालो मे खोये थे
मगर जब हम बारिश मे भीग किसी के ख्यालो मे खोये थे
तब भीगी जुल्फों से पानी मेरे face पे बरसा कर तुम्ही ने जगाया था
हमे तनहा भी किया और कोई आवाज़ तक न दी
हमे तनहा भी किया और कोई आवाज़ तक न दी
हमने खोजा तो बहुत तुम्हे
उन भागती चंचल सी आंखों मे
तुम बहुत ही दूर जा निकले इस दुनिया की भागदौड़ से
हमे तो उम्र लग गई पूरी तेरी तरफ़ चार कदम चलने मे
खेल मोहब्बत का अब फ़िर न खेला जाएगा
ये दिल अब तेरे हवाले तेरे पास ही रह जाएगा

28th june evening poem

आंखों से ही लफ्जों को अदा कर दिया उसने
चुप रहकर भी इज़हार-ऐ-वफ़ा कर दिया उसने
हसीं बाला का मतलब उससे मिलकर जन मैंने
बिन बोले ही सब कुछ बाया कर दिया उसने
चंचल सी मुस्कुराते आंखों मे शोख अदाए
अपना मुझे समझा अपना समझकर
दीवाना कर दिया उसने
मेरे दिल को पहले मेहनत के लिए जाना जाता था
आजकल उसने दीवानों का नाम देकर
शहर भर मे चर्चा कर दिया उसने
लाखो थे उसकी सूरत के दीवाने
(सूरत के सीरत के नही )
कि लाखो थे उसकी सूरत के दीवाने
एक गहरी साँस लेकर उसने नाम मेरा अपनी आंखों से
सारे शहर के सामने आज बया कर दिया उसने

28th june closing poem

एक अंजना सा हुआ दर्द
जब महसुस हुआ आपका न होना
हैं जिंदगी हमारी बस आपकी खुशी
साथ आपका मुझे कभी न खोना
जिंदगी से शिकायत नही फिर भी मन उदास हैं
जिंदगी से शिकायत नही फिर भी मन उदास हैं
बस हर पल मे आपका प्यार हो यही मेरे दिल की आस हैं
दिल जलता हैं जुदाई का नाम सोचकर
ये दिल जलता हैं जुदाई का नाम सोचकर
डरता हूँ कुछ हो न जाए घबराती सोच का दामन छोड़कर
आप कहीं खो न जाए , ये वत मुझे कहीं ले न जाए
ले जाए तो आपके साथ के साथ आपकी हर बात के साथ
आपकी हर बात के बाद आप बस मेरी आंखों के आगे चली आए

28th june opening poem

दिल मे अगर खामोश बातो के फलसफे ना होते
हम उनकी मोहबात मे यूँ पागल ना होते
बैठते हम भी पल दो पल के लिए उनके पहलु मे
अगर नसीब अपने इस कदर ख़राब ना होते
सुन लेते वो जो मेरी आखिरी गुजारिश को
घर के बाहर उनके दिल के इतने बीमार ना होते
पढ़ लेते जो वो मेरे चेहरे की हर बात को
ज़िन्दगी मे फिर मेरी इतने सवाल ना होते
छुपा लेते जो वो मेरी मोहब्बत को
ज़माने के लिए फिर हम खुली किताब ना होते
आ जाते मेरे एक बार बुलाने पर वो जो
हमारी ज़िन्दगी मे इंतज़ार के मायने ना होते
चलो कुछ काम जान बुझ कर करती हैं वो
शायद हमारी तरह हमे थोडा प्यार करती हैं वो
ये थोडा प्यार ही बहुत सारी ज़िन्दगी के लिए
बिना मांगे ही दे दे दीवाना उसकी ख़ुशी के लिए

27th june evening poem

तोड़ना होता रिश्ता तो हम न बनते
उम्मीद नही होती तो हम सपने नही सजाते
ऐतबार किया हमने आपकी वफ़ा पे
जो भरोसा न होता आप पर
तो अपना दिल आपके हाथ मे न थमाते
तेरी यादों को अपने पास न बुलाते
थपकिया देकर उन्हें अपने साथ न सुलाते
तेरा हाथ थामकर झूले पे बैठते थे
तेरे चले जाने के बाद झूले को अकेले न झुलाते
बस बैठे रहते घंटो साहिल के पास
रेत पर तेरा नाम लिखते जाते
और उसे कभी न मिटाते




27th june closing poem

आगाज़ तो होता हैं अंजाम नही होता
जब मेरी कहानी मे उसका नाम नही होता
आगाज़ तो होता हैं अंजाम नही होता
जब मेरी कहानी मे उसका नाम नही होता
जब जुल्फ की कालिख घुल जाए कहीं
बदनाम साहिल होता हैं पर वो गुमनाम नही होता
एक मौका दे जिंदगी तेरे पास आने का
तेरा हाथ छूने का
मगर ये इनाम हर किस्मत मे
हर शक्स के साथ नही होता
बहते हैं आंसू जब भी तेरी आंखों से
हम उन्हें थाम लेते हैं
पर मेरा पैगाम कोई तुझ तक न पहुंचाए
फिर वो पैगाम नही होता
करवाते बदलती हैं रात साडी चाँदनी के साथ
चाँदनी कहाँ चली जाती हैं
सूरज पे आने पे कहाँ छुप जाती हैं
प्यार बहुत करती हैं पर उस चाँदनी का कोई नाम नही होता

27th june opening poem

आंखों मे कई सपने सजाकर रोये बहुत हैं हम
दिल को एक नई दुनिया दिखाकर रोये बहुत हैं हम
वो बदल गया तो हमने भी फेर ली नज़र अपनी
पर उसके खातो को जलाकर रोये बहुत हैं हम
जिन पेडो की छाँव मे हमने की थी बहुत सी बातें
उन बागो मे जाकर रोये बहुत हैं हम
हौंसला टूटने का हो तो वफ़ा करना किसी से
ये बातें लोगो को सुनकर रोये बहुत हैं हम
फ़िर यूँ हुआ की आंखों ने कई रात जागते हुए बितायी
पलकों पे तेरी याद बिठाकर रोये बहुत हैं हम
वो आज मुझसे मेरे दर्द की वजह चाहता हैं
जिसकी बातें औरो को सुनकर रोये बहुत हैं हम

26th june evening poem

आ भी जाओ की जिंदगी कम हैं
तुम नही हो तो हर खुशी कम हैं
वादा करके ये कौन आया नही
शहर मे आज मेरे शायद रोशनी कम हैं
जाने क्या हो गया हैं मौसम को
धुप ज्यादा हैं लेकिन चाँदनी कम हैं

आइना देख कर ये ख्याल आया
कि आजकल किसी के दिल मे दोस्ती कम हैं

26th june closing poem

कल तेरी कुछ चिठ्ठिया रख दी हमने फूलों के संग
पहले उन फूलों मे आती थी खुशबु
पर तेरे खातो को देखने के बाद
खुशबू चली गई न जाने किसके संग
अब हमे काला रंग ही अच्छा लगता हैं
क्यूंकि काले रंग पे कोई और रंग कहाँ चढ़ता हैं
तू बहुत खुबसूरत
(आय हाय !!)
तू बहुत खुबसूरत मैं बस ठीक ठाक हूँ
पर देखे जो भी तुझे मेरे संग
रह जाता हैं वो दंग
सोचा हैं कभी फुर्सत मे बैठेंगे हम तेरे संग
सोचा हैं कभी फुर्सत मे बैठेंगे हम तेरे संग
दोहराएंगे उन चिठ्ठियों का लेखाजोखा पर सिर्फ़ तेरे संग
फुर्सत मिलती ही नही
कि आजकल फुर्सत मिलती ही नही कि हम हो तेरे संग
बस तेरी लिखी वो चिठ्ठिया पढ़ लेते हैं
और याद जब ज्यादा आती हैं
तो उन्हें उन फूलों के संग रख देते हैं


26th june opening poem

वो होते कोई कली तो हम खिल जाते
और हम उनकी महक बन जाते
वो होते कोई साहिल तो हम किनारे पे अपनी एक छोटी सी नाव लगते
वो होते अगर चाँद तो पूनम के दिन हम भी अपने घर की बत्ती बुझाते
वो होते अगर पेड़ तो रोज़ धुप मे काम करते
जब थक जाते तो उनकी छाँव मे सो जाते
वो होते अगर ये सब तो हम क्या क्या करते
न साँस लेते न काम करते बस हर बात पे उसी को तकते
मगर ये सब तो हैं बस बातें
अगर हम ही न होते तो इन बातों की बातें फिर कौन निभाते

25th june evening poem

आज इन हवाओ मे भी अलग अंदाज़ हैं
आप हमसे दिर होके भी हमारे दिल के बहुत पास हैं
जबसे बहाए हैं रंग तुमने मेरी दुनिया मे
तबसे ही इस दिल मे दोबारा जीने की आस हैं
अरमान था तो बस तुझे पाने का
गम हैं तो बस तेरे शहर से चले जाने का
इससे बढ़कर क्या होगी हद मेरी दीवानगी की
कि अभी तक करता हूँ इन्तेज़ार तेरे लौट आने का
जनता हूँ कि तू सुनती हैं इस पल मुझे कान लगाकर
तभी तो गम हैं कमबख्त शो ख़तम करके जाने का
कोई तो बहाना बना मेरे घर आने का
इन्तेज़ार करता हैं ये दीवाना पलके बिछाकर
मोहब्बत के फलक से उतर आने का
जिंदगी बार बार एक चीज़ सिखाती हैं
जब कोई दूर जाता हैं तो उसके होने की कमी बताती हैं

25th june closing poem

हर लम्हा तेरी यादों की खुशबु हैं मेरे पास
इस शहर मे तनहा हूँ मगर तू हैं मेरे पास
जिस शक्ल को चाहू तेरी सूरत मे बदल दू
तू होगी कोई जादू कोई हुस्न की परी
पर हर हुस्न की परी की वो बात वो खुशबु हैं अब मेरे पास
जानता हूँ कि तू सदा बातें बनाती हैं
कभी दिल चुराती हैं कभी बात बात पर दिल दुखती हैं
मगर हर बात जानने के बाद भी न जाने क्यों ये दिल
तुझे सुनना चाहता हैं देखना चाहता हैं महसूस करना चाहता हैं
शायद वो बात बताना चाहता हैं जो कभी ख़ुद से नही कही मैंने
कभी कुछ न कहीं मैंने
पता नही क्यूँ इस शहर की कोई मुझे पसंद आ गई
उसकी पसंद नापसंद भी हैं मेरे पास
क्यों थामुंगा तुझे छोड़कर मैं तुझे किसी और की बाहें
जब हर बात मेरी तुझसे शुरू होकर तुझपे ख़तम हो गई
ए जिंदगी तू किसी के लिए रही एक आम सी लड़की
पर मेरे लिए मेरी जिंदगी हो गई

25th june opening poem

आपको भूल जाए हम इतने बेवफा नही
आपसे क्या गिला करे आपसे कुछ गिला ही नही
सबसे मिलाना दिल तोड़ना उनका तो खेल हैं
हमसे ही भूल हो गई उनकी कोई खता नही
काश वो अपने गम मुझे देते तो कुछ सुकून मिलता
वो कितने बदनसीब हैं जिन्हें दुनिया मे गम मिला ही नही
जुर्म हैं अगर वफ़ा तो क्या करू मैं वफ़ा को छोड़ दू
कहते हैं इस गुनाह की होती कोई सज़ा भी नही
गम मिलते हैं और चले जाते हैं
पर दोस्त ये गम ही जिंदगी जीना सिखाते हैं
हौंसला ख़ुद पे रखना हर पल अपने सपने के संग चलना
चलना ज़रूर रुकना नही क्यूंकि कभी कभी दोस्त ही अपने अपना रास्ता डिगते हैं
हम हैं तो सब हैं और सब हैं तो हम हैं
क्यूंकि अब हम गम को भी हँसाना सिखाते हैं
सब भूल जाए लेकिन उसे तुझसे प्यार करना सिखाते हैं

24th june evening poem

कल तक मेरे पास तुम
ख़ुशी से खुद ही आ जाते थे
और हलके से आकर के
मेरे पास खड़े हो जाते थे
और वो प्यारे से शब्द
मेरे कानो मे कह जाते थे
और मेरे इस दिल को भी
तुम ही सम्हालते थे
कल तक गैर थे पर अपने से लगे
........................................

24th june closing poem

दो दिल जहाँ मिलेंगे कुछ बात हो ही जायेगी
पहली ही मुलाक़ात मे उससे कुछ बात शायद हो ही जायेगी
सताएगी तेरी याद बाद मे पर तुझसे कुछ पलो की बात तो शायद हो ही जायेगी
चेहरा दिखाई देगा मन बनाएगा परछाइया
पर फिर भी मिलेंगे छुप के देखना ये मंजिल उसी दिन नज़र आएगी
शहर के कुछ लोगो न न विशवास किया मेरे फैसले पर
एक दिन देखना तेरी दुआएं उन सब का सर भी शर्म से झुकयेगी
हँसी उडाते हैं गली मोहल्लो मे खड़े होकर बातें बनाते हैं
सच कहू ऐसे लोग कभी कुछ नही बन पाते हैं
बस भरोसा ख़ुद पर रखो अपने सपनो से मोहब्बत करो
हर जुबां पे रहो ऐसा काम करो
बस खूब सारा काम करो और बहुत सारा नाम करो

24th june opening poem

हथेली पर जिसे लिख कर बार बार मिटाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
मेहंदी जिसके नाम की रचाती हो वो नाम मेरा ही तो हैं
गुस्सा जिस बात पर बार बार करती हो
गुस्से से कागज़ पर जिस नाम को बार बार मिटती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
सुनकर जिसको पलके तेरी झुक जाए
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे होठो मे छुपकर होठो पे ना आ पाये
बस धड़कन मे जाकर कई देर तक कम्पकपाये
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरी पूजा मे तेरी हर दुआ मे
झिलमिलाती हर शाम मे पाल पर बिताती उस सुबह मे
जो हर पल तेरी यादों मे चलता जाए
वो नाम मेरा ही तो हैं
वो बारिश की बूंदों मे वो सागर की लहरों मे
वो नाम मेरा ही तो हैं
अपना नाम जिससे जोड़ा हैं तुने
तेरे बिना एक नाम अधुरा हैं जो
वो नाम मेरा ही तो हैं

23rd june evening poem

कुछ गुस्सा कुछ नखरा कुछ इल्तजा भी हैं आपकी
हमसे रूठना हमे सताना और तडपाना अदा हैं आपकी
हर बात पे हँसना हर बात पे मुस्कुराना
कभी बात बात पर मुंह फुलाना
गुस्सा ऐसा कि फूलो को भी मानते मानते पसीना आ जाए
कभी बड़ी से बड़ी गलती हंस कर माफ़ कर देना
कभी छोटी सी गलती को भी तु बड़ा बताये
तेरी बातो से दिल का धडकना
तेरी साँसों से मेरी साँसों का चलना
कभी मेरे कॉल करने पे तेरा फ़ोन कट करना
अपनी शर्मीली नजरो से सुर्ख होठो से
मेरे दिए फूलों को चूमना
क्या क्या करे दिल बयान से अफ़साने आपके
आप इश्क हैं आप मोहब्बत हैं
ना तरसाओ यूँ हमे साथ के लिए आपके

23rd june closing poem

कभी हर हँसी पे आता हैं गुस्सा
कभी सारे जहाँ को हंसाने को दिल चाहता हैं
कभी छुपा लेता हैं गमो को भी ये दिल किसी कोने मे
कभी किसी को फ़ोन लगा के सब कुछ सुनाने को दिल चाहता हैं
कभी रोता नही ये मन किसी बात पर
कभी यूँही आंसू बहाने को दिल चाहता हैं
कभी लगता हैं बहुत अच्छा आकाश मे उड़ना
कभी किसी कि हर बात मानने को ये दिल चाहता हैं
कभी किसी सागर की लहरों से डरता हैं ये दिल
कभी उन्ही लहरों मे समां जाने को ये दिल चाहता हैं
कभी लगते हैं अपने बेगाने से
कभी किसी बेगाने को अपना कहने को ये दिल चाहता
जिनके साथ रहो जिंदगी भर उन पर कभी प्यार नही आता
कभी किसी अनजाने को प्यार करने को ये दिल चाहता हैं

23rd june opening poem

कोई दीवाना कहता हैं कोई पागल कहता हैं
मगर दिल की बैचैनी को बादल समझता हैं
मैं तुम से दूर कैसे तुम मुझ से दूर कैसे
ये तेरा दिल धड़कता हैं तो मेरा दिल समझता हैं
दिल की बात होठो पर लाकर हम दुःख सहते हैं
हमने सुना था इस बस्ती मे कही दिलवाले रहते हैं
बीत गया सावन का महिना मौसम ने नज़ारे बदली
लेकिन इन प्यारी आँखों मे अब भी आंसू रहते हैं
एक हमे आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दीवानों को तो लोग ना जाने क्या क्या कहते हैं
जिनकी खातिर शहर छोडा बदनाम हुए
आज वही हमसे बदले बदले रहते हैं
पूरी तनख्वाह जिसके लिए साडी लाने मे लगा दी
वो इसे फिजूलखर्ची कहते हैं
बात उसके घर के चक्कर लगाने की
उसने सखियों को बता दी
आग बिन मौसम सारी बस्ती मे लगा दी

21st june closing poem

आज कुछ कहने को नही मेरे

लगता हैं कि कोई मुझसे मेरे शब्द चुरा कर ले गया

आज कुछ देखने को नही हैं मेरे पास

लगता हैं कि कोई मुझे दुनिया का सबसे प्यारा चेहरा दिखा गया

आज कुछ बताने को नही मेरे पास

लगता हैं कि कोई मुझे अपना सच्चा साथी बता गया

आज नही किसी का हाथ थामकर पाल पर चलने का दिन

शायद कोई मुझे सागर से प्यार करना सिखा गया

आज नही मेरी आंखों मे इतनी ताकत

कि मैं किसी की आंखों से आँखें मिला सकू

शायद कोई आंखों आंखों मे मुझे अपना बना गया

आज नही शब्द मेरे पास तैरते हुए

आज नही जज़्बात मेरे होठो तक आकर बहकते हुए

आज नही मेरे पास उसका अक्स

उसकी हर बात मगर मेरे पास हैं

आज हैं वो चेहरा जो इस दुनिया मे सबसे ख़ास हैं

आज हैं वो जो शायद मेरे सामने न होता हुआ भी

मेरे दिल के मेरी आंखों के आस पास हैं

21st june opening poem

वो एक अहसास जो कहता था
मुझे तुझसे प्यार हैं
कैसे करू यकीं
यकीं नही आता
उसे मुझ पर ऐतबार हैं
वो चाहती हैं न हो नम मेरी आँख कभी
लेकिन हर खुशी के बाद भी
उसकी हर खुशी पूरी हो दिल को इन्तेज़ार हैं
अब वो कहती हैं वो मेरी सिर्फ़ मेरी
हाँ ये हकीक़त हैं पर क्यों इससे मुझे इनकार हैं
मैं यहीं चाहू की कोई न देखे उसे मेरे सिवा
मुझे चाहत के मलाल मे अपना साया भी न गावर हैं
वो मेरा चाँद हैं कहीं नज़र न लगे उसको
मैं आज भी उसी की बदौलत जिंदा हूँ
ये ख़बर न लगे उसको
भले कुछ न मिले मुझको
पर बिना मांगे सब दे देना उसको

20th june closing poem

कौन जानता हैं कि क्या होगा
पर अब जो होगा सच बहुत अच्छा होगा
इस जहाँ मे मैं अकेला दीवाना तो नही
कहीं न कहीं कोई न कोई तो मुझ पर भी फ़िदा होगा
कल मस्जिद मे मैंने देखा था तुझे
शायद मेरे दिल को कोई धोखा हुआ होगा
तू मन्दिर मस्जिद मे कहाँ जाती हैं
खुदा को शायद कुछ पल के लिए ख़ुद पर भरोसा न होगा
तभी तो एक साया तेरे जैसा उसने भी मेरी तरह मस्जिद मे देखा होगा
आज हवा मे एक अजीब सी ठंडक हैं
आंसू तेरा तेरी आँख से शायद किसी के हाथ पर गिरा होगा

20th june opening poem

फ़िर तेरी याद आई फ़िर ज़ख्म मुस्कुराये
आ फिर से लौट आ की तुझे हम एक पल को न भूल पाये
उस शाम को अब भी तेरा इन्तेज़ार हमदम
दिल धुन्धता हैं तुझको तेरी हर बात की डोली सजाये
वादों का क्या भरोसा वादे तो बस फरेबी
हैं बात हमारी कि हम
एक दिन ज़रूर इस दुनिया को कुछ बन कर दिखाए
मत पूछ क्या हाल था चाहत के बाद अपना
बस रो रहे थे सपने पर तेरे गम मुस्कुराये
तू दूर हमसे हंसकर जा रहा था
तो आँख मे तेरी क्यों कुछ अश्क झिलमिलाये
नींद से पूछ लेना उन हसरतो की बात
जब प्यार बनके हर रात तू मेरे ख्वाब मे आए

19th june closing poem

मेरी आँखों को सुकून मिले
कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़ारे मिलाना
दिन का हर पल हर लम्हा सुहाना लगे
कुछ ऐसे मेरे साथ थोडा वक़्त बिताना
हंसी मेरे होठो से कभी ना जाए
कुछ ऐसा मेरे लिए तुम मुस्कुराना
हो जाए मुझे खुशियों की आदत
कुछ ऐसे मेरी ज़िन्दगी से गमो को मिटाना

19th june opening poem

वो पूछती हैं मुझसे चाँद की बस्ती कहाँ हैं
मैं इस बात पर ईद का इंतज़ार करता हूँ
वो पूछती हैं मुझसे कौन सूरज मे सुलगता हैं
मैं बस चुप रह कर खुद ही खुद उलझता हूँ
वो पूछती हैं रूह की लरज़िश के बारे मे
मैं क्या कुछ कहू बस चुप रहता हूँ
वो बोली सावन मे अब वो रंग क्यों नहीं
मैंने कहा बस इतना कि तेरे बिना आँख नाम हैं
सबसे छुपा कर दर्द जो वो मुस्कुरा दिया
उसकी इसी बात ने हमे रुला दिया
आँखों से उठ रहा था दर्द का धुआं
चेहरे बता रहे थे हमने अपना सब कुछ गवा दिया
जाने उसे लोगो से थी क्या शिकायते
तन्हाइयो के डेरे मे मुझ बातुने को बुला दिया
आवाज़ मे था ठहराव आँखों मे नहीं
रोते रोते कह रहा था कि हमने सब कुछ भुला दिया

18th june closing poem

मोहब्बत की जुबां छोडो
मेरी जुबां तो समझो
धुप ही धुप निकली हैं आज तो
ए बादलो टूट कर मुझ पर आज तो बरसो
जैसे शहरो मे हर शाम हवा चलती हैं
तुम इस तरह मुझमे चलो
और मुझे सबसे अलग कर दो
तुम छुपा लो मेरा दिल क़ैद मे अपनी
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मैं कोई मसला हूँ तो मुह न फेरो मुझसे
अपनी चाहत से मेरे पास बैठकर मुझे बस हल कर दो
अपने गमो से कहो किवो हर पल बस मेरे साथ रहे
ये अहसास अपने होने का बस यही अहसास मेरे नाम कर दो

18th june opening poem

मुझ से मत पूछो कि क्यों आँख झुका ली
तेरी तस्वीर ही बची थी पास मेरे
वो क्यों सबसे छुपा ली
जिसपे लिखा था तु मेरे मुक़द्दर मे नहीं
अपने माथे की वो लकीर मिटा ली मैंने
हर जन्म सबको यहाँ सच्चा प्यार कहाँ मिलता हैं
तेरी चाहत मे एक उम्र बीता ली मैंने
मुझको जाने कहाँ एहसास मेरे ले आये
एक ही मोमबत्ती बची थी दराज़ मे मेरे
तेरी याद आई तो दिन मे ही जला ली मैंने
रहती हैं मेरी साँसों मे तेरी खुशबु
तेरी साँसों की गर्मी से ठंडक पा ली मैंने
मेरी एक बात को सुन कर जब वो बहुत रोये
बस वही एक बात आपसे छुपा ली मैंने
तेरी याद यूँ तो रोज़ आती हैं
उस दिन ज्यादा आई तो
यादो की डोली सजा ली मैंने

17th june closing poem

हर आहट अहसास हमारा दिलाएगी

हर हवा एक दिन किस्सा हमारा गुनगुनायेगी

हम इतनी यादें भर देंगे

न चाहते हुए भी हमारी इन्नी सी याद आएगी

सुना हैं वो कह कर गए हैं अब तो

हम सिर्फ़ तुम्हारे ख्वाबो मे ही आयेंगे

कोई कह दे उनसे ऐसा वादा न करे वो

वरना हम जिंदगी भर के लिए सो जायेंगे

मर गए तो सब ठीक

जीते जी तो किसी के ना हो पायेंगे

स्टूडियो मे काम करते करते भी

हम बस तेरी यादों मे खो जायेंगे

पूछेगा उदयपुर जब तेरा नाम

बस चुप हो जायेंगे

पर तेरा नाम ना ले पायेंगे

एक दिन वक्त का हाथ हौले से थामेंगे

और देखना उदयपुर आपके प्यार के साथ वक्त से आगे निकल जायेंगे

17th june opening poem

टूटे हुए ख्वाबो मे हकीकत ढूंढ़ता हूँ
पत्थर के दिलो मे मोहब्बत ढूंढ़ता हूँ
नादान हूँ मैं अब तक ये न समझा
बेजान बुतों मे क्यों मैं इबादत ढूंढ़ता हूँ
मेरे जज्बातों की कीमत यहाँ कुछ भी नही
बेईमानी के बाजारों मे शराफत ढूंढ़ता हूँ
इस अजनबी दुनिया मे कहने को तो कोई भी अपना नही
गैरो की आंखों मे मैं अपनी सूरत ढूंढ़ता हूँ
उम्मीद की थी प्यार की बस
शायद यही खता हुई
गैर हुए अश्को मे आजकल मैं अपनी खुशी ढूंढ़ता हूँ
गुज़र जाते हैं रोजाना कई बादल मेरी छत से
मैं मेरी छत पर रुकने वाले बदल का पता ढूंढ़ता हूँ
नया घर लेने की कबसे सोच रहा हूँ
पर पुरानी यादो को फुर्सत से समेटने का मैं वक्त ढूंढ़ता हूँ
ढूंढ़ता हूँ मैं तुझे अपनी हर छोटी बड़ी बात मे
अपने दिल को भी मैं आजकल तेरी बड़ी आंखों मे ढूंढ़ता हूँ
क्या ढूंढे क्या खोजे जब मैं ख़ुद खुदा से आजकल अपने होने की वजह ढूंढ़ता हूँ

16th june closing poem

सिलसिले ये भी अजीब होते हैं
गम उनको भी नसीब होते हैं
जो लोग खुशनसीब होते हैं
बस होता हैं कोई एक ही अपना
बाकी सब तो रकीब होते हैं
सभी को जिंदगी मे बस दौलत की ख्वाइश हैं
न जाने क्यूँ लोग इतने गरीब होते हैं
जख्म हमको जो अदा करते हैं
वो ही हमारे हबीब होते हैं
दिलो मे दर्द छुपाने वाले दर्द भी तो बड़े अजीब होते हैं
मौसमो का इन्तेज़ार करते रहते हैं हम बार बार
पर मौसम भी कहाँ हमारी तरह खुशनसीब होते हैं
आंसुओं से दोस्ती करते हैं हम रात रात जागते हैं
पर क्या करे ये सिलसिले भी अजीब होते हैं

16th june opening poem

बहला चूका हूँ मन को जूठी तसल्लियों से
पोंछे हैं आंसू अपनी हथेलियों से
जो हाथ होता तेरा तो तकिया बना के सोता
रोके हैं आंसू तेरे हाथो की लकीरों से
तुम थोडा और पास आती तो धडकनों को सुनती
मैंने बटन टाँके हैं अपनी ही उंगलियों से
धागा दिल का जुड़ गया जब दांतों से तुमने उसे काटा
बटनों का मन कहे ये तेरे कानो की बालियों से
दीवार पूछती हैं तेरी आँखों की पुतलियों से
फूलो का फिर एक बार फेरा लगाने आना
काँटा हूँ मैं कहता यही खुबसूरत तितलियों से
अँधेरा चाहे कितना भी घना क्यों ना हो
तेरा साया साफ़ नज़र आता हैं उन जालियों से
बस प्यार हैं तुझसे तुझ से ही रहेगा
चाहे मुलाकात हो रोज़ कितनी भी परियो से

14th june closing poem

तुम्हारी राष्ट्र सेवा पर जब मुस्कुराने लगे लोग
तुम्हे तुम्हारा भविष्य दिखा कर डराने लगे लोग
तो मत घबराना डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर बात को मगर धैर्य से सहना
ग्रेट वाल की भांति कभी न ढहना
इनमे से कईयो ने तेरी तरह शुरुआत की थी
तब इस ज़माने ने उन पर भी आघात की थी
हथियार जब डाल दिए तब भीड़ ने ढेरो हाथ दिए
अब ये भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारी नीड़ हैं
ये तो खुनी राहो पर चिराग जलाते रहेंगे
किसी के जागने पर उसे सुलाते रहेंगे
मात्रभाषा मात्रभूमि पर पर त्याग करो
वरना ये लोग तो नस्लों को खोखला करते रहेंगे

14th june opening poem

कभी दर्द से तो कभी खुशी से मिलवाती हैं जिंदगी
कभी आंसू पी जाती हैं तो कभी अपने हर ज़ख्म से एक नई बात सिखाती हैं जिंदगी
कभी हर साँस बोझ लगती हैं
कभी दुनिया मे सिर्फ़ तू ही अपनी लगती हैं
कभी किसी महल के जैसी
तो कभी खंडहर सी नज़र आती हैं
कभी अमावस की तरह ये सारी रात जगाती हैं
तू हैं मेरी इन हालातो से जुठ्लाती हैं जिंदगी
कभी दर्द से कराहती तो कभी मेरे कंधे थपथपाती हैं जिंदगी
कभी अपने साथ नही देते तो कभी पराये जीने नही देते
उम्र के हर पड़ाव पे जाने कितनी ठोकरे खिलाती हैं ये
पर हर ठोकर पर बहुत हिम्मत दिलाती हैं जिंदगी
कर लो दीदार सुनहरे कल का बस
जिंदगी से ढूंढ़ लो बस एक डगर
चाहे कच्ची चाहे पक्की
पर जब पक्का होगा इरादा दिल का
तो देखना कितना आसान होगा ये सफर
जिंदगी को क्या सिखाती हैं जिंदगी

13th june closing poem

जो मैं ना रहू आँखों मे आंसू ना भरना
इस दिल पे हैं बस नाम तुम्हारा ये यकीं रखना
मैं हूँ तेरे साथ तेरी हर बात का हमराज़
दूर होकर भी एक दुसरे से ना दूर हैं हम
गुज़रता हर पल हर लम्हा तेरे अक्स के करीब
साँसों की ये डोर तेरी साँसों के संग जोड़ दे
खुदा के बाद दिल से करू तेरी ही पूजा
वक़्त की गर्मी जो झुलसाने लगे वजूद
तो बस मेरी चाहत की नमी को करना महसूस
जो सर्द हवा ज़माने की आने लगे पास
समझ लेना कि मैं हूँ तेरे आस पास
ना रोना ना उदास होना
मेरे दिल का कोना क्या ये दिल कमबख्त ही रहेगा तेरे सिर्फ तेरे पास

13th june opening poem

मेरे लम्हों की दास्ताने अगर तुम कहो तो सुनु तुमको
बहुत साल हम जागते रहे हैं चलो अब ज़रा जगाउ तुमको
तुम ही हो जो रोशनी से हमारी आँखों मे आ बसे हो
जब अपनी आँखें ही कह दिया तो और क्या बुलाऊ तुमको
तुम ऐसा करना कि एक लम्हे को अपनी धड़कन पे सजा लेना
अगर मेरी वफ़ा मेरे जज़्बात कभी याद आये तुमको
मोहब्बत हम रिश्तो मे तलाश कर के थक गए
कहाँ जाके बसे हो कहाँ से ढूंढ़ लाये तुमको
तुम्हे तो सूरत मुबारक सुख मे हम याद भी नहीं
मगर बताओ कि अपनी बातो मे कैसे भुलाये तुमको
तुम अपने हुस्न का गुरुर करते हो
पर हम अपनी खुद्दारी मे मगरूर हैं ये बात कैसे बताये तुमको
कह दो कि ये जूठ हैं कि तुमने उसे भुला दिया
जिसने दिन रात सुबह शाम हर एक लम्हा
अपनी यादो मे सजा रखा हैं तुमको

12th june closing poem

अपने प्यार अपने जज़्बात से हार गया
सब जीत गये इस मौसम मे
और मैं इस मौसम से हार गया
वो छुपाती रही सबसे मेरी बातें
(पता नही क्यों !! )
वो छुपाती रही सबसे मेरी बातें
और मैं दुनिया को तेरी बातें बताते बताते हार गया
(आपके साथ भी ऐसा होता होगा न कि जब आप किसी से बेइंतेहा प्यार करते हैं तो बस टॉपिक उसी का होता हैं यार वो ऐसा दिखता हैं वो ऐसे बोलता हैं ऐसी बातें करता हैं ऐसे सोचता हैं ऐसे खाना खाता हैं ऐसे डांस करता हैं न जाने क्या क्या !! जी )
रेत को हीरे की तरह हाथो मे सम्हाला
पर मैं रेत पर तेरा नाम लिखते लिखते हार गया
कुछ लम्हों को मैंने इस तरह पकड़ा
कि पुरी जिंदगी मैं उन्हें सम्हालता सम्हालता हार गया
बनकर मोती जो आंखों से आंसू भी न बहा पाये
ऐसे बेजुबान प्यार को मैं जुबां देते देते हार गया
तेरे शब्दों की दुनिया मे कई जिंदगिया जी ली मैंने
(जब किसी से किसी को प्यार से i love u कहा उसके बाद की बात हैं )
कि तेरे शब्दों की दुनिया मे कई जिंदगिया जी ली मैंने
बस तेरे नाम के साथ अपना घर बसाता बसाता न जाने मैं कैसे हार गया

12th june opening poem

वो प्यार ही क्या जिसमे जुदाई नहीं होती
वो इश्क क्या जिसमे रुसवाई नहीं होती
वो जान क्या जिससे लड़ाई नहीं होती
वो दिल क्या जिसमे तु नहीं होती
वो साँसे क्या जिसमे तेरी खुशबु नहीं होती
वो ज़िन्दगी क्या जिसमे तेरी बात नहीं होती
होती हैं रोज़ लड़ाई मेरी तेरी तस्वीर से
घंटो रोता रहता हूँ मैं उसके सामने
पर उससे कोई बात नहीं होती
सब कहते हैं सब्र रख प्यार ऐसे ही नहीं होता
मैं दुहाई देता हूँ अपने अकेलेपन की
पर कोई मेरा साथ नहीं देता
मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं देता
वो खुदा सारी दुनिया को मोहब्बत देता हैं
फिर हमे कुछ पल को भी प्यार क्यों नहीं देता
एक वो जो कुछ नहीं कहता
और एक मैं जो चुप नहीं रहता
वाह मोहब्बत !! तेरा जज्बा क्यों सब मे नहीं रहता

11th june closing poem

दिल की आग के इस धुएँ मे मंजिल खो बैठे
तेरी याद ऐसी आई कि सांस लेना भूल बैठे
शायद किसी सपने मे तेरी एक झलक देखि होगी
इस उम्मीद मे आँखें खोलना भूल बैठे
हम थे नादान जो एक उड़ते बादल को
अपनी मंजिल कह बैठे
सोचा था क्या और क्या कर बैठे
जिस पर हम जीते मरते हैं वो तो बेखबर
और हम उसकी मोहब्बत मे ना जाने क्या क्या
खुद पर ही सितम कर बैठे

11th june opening poem

कभी कभी आता हैं जिंदगी मे ख्याल
किमेरी जिंदगी मे भी हैं कोई बेमिसाल
गुज़रे जिंदगी पुरी बस उसी के साथ
जिंदगी के साल न लगे साल
साथ लगे जिसका रूमानी
हो जैसे वो कोई रोशनी
मिलू जो उससे तो एक अहसास हो
हो जैसे कोई ख़ास
दूर होकर भी लगे वो मुझे यही कहीं आस पास
समझे मुझे मुझसे भी ज्यादा
वो हैं जिसे कह सकू मैं अपना हिस्सा आधा
हैं मुझे उस शक्स का इन्तेज़ार
जिस पर हो मुझे सबसे ज्यादा ऐतबार
दुनिया चाहे कुछ भी कहे मेरे लिए
कुछ भी सोचे मेरे लिए
किसी की सोच मे वो शामिल न हो
मेरे हर ऐतबार पर उसे हो ऐतबार
मैं पूरी करू उसकी हर ख्वाहिश
भले कर रहा हो वो मेरे प्यार की आज़माइश
ताउम्र चल सकू मैं जिसके साथ
और कह सकू अपने दिल की हर बात

10th june closing poem

तेरे जाने के बाद क्या कहू क्या रह गया
बस सिर्फ साँसे चलती रही नाम का मैं रह गया
लोग घूम घूम कर तेरे घर के चक्कर लगते रहे
मेरी जेब मे बस बारिश मे भीगा हुआ तेरे घर का पता रह गया
वो मेरे सामने ही गया था मुझसे दूर
और मैं था कि सड़क की तरह बस
उसे देखता रह गया
जूठ बोलने वाले कहीं से कहीं पहुँच गए
मैं बस रोता रोता सच बोलता रह गया
हाँ जानता हूँ आंधियो के इरादे अच्छे ना थे
ये दिया फिर कैसे जलता हुआ रह गया
वो कुछ बातें होठो से बोलता रहा
कुछ जाते जाते आँखों से कह गया

10th june opening poem

जब दास्ताँ हम कहेंगे
करेंगे ना तेरा जिक्र भी हम
मगर ना फिक्र कर तु
लेंगे ना तेरा नाम तक भी हम
सुनते रहे सबके दिलो की दास्ताँ हम
कह तक ना सके अपना हाल - ए -दिल भी हम
अपने सभी अजनबी लगे जो राह मे मिले
अभी घर से चले थे बस दो ही कदम हम
क्यों वक़्त बेरुखी से कटा जब बात किसी से भी की
रहते हैं खूब खुश जब मिलते हैं खुद से हम
शहरो मे तो हर किसी की कहानी हैं हारी सी
नयी ज़िन्दगी जीने चले गाँव की तरफ हम
ज़िन्दगी एक दिन मे सिमट गयी ऐसी कि
सूरज के सामने जलते रहे बन के दीप हम

5th june closing poem

4th june closing poem

3rd june opening poem

....................................
कुछ ऐसे तुम मुझसे नज़ारे मिलाना
दिन का हर पल हर लम्हा मुझे सच्चा लगे
ऐसा पुरे दिन मे से कुछ वक्त मेरे साथ बिताना
जब तुम साथ होती हो
क्या कहू कि दिल से क्या बात होती हैं
हँसी मेरे होठो से कभी न जाए
ऐसे कुछ पलो के लिए सारी दुनिया को भूल
एक पल मेरे लिए मुस्कुराना
हो जाए मुझे खुशियों की आदत
(न जाने कब होगा ऐसा )
कि हो जाए मुझे खुशियों की आदत
कुछ ऐसे मेरी जिंदगी मे आके
मेरी जिंदगी से मेरे सारे गमो को मिटाना
मुझे भी लगे सपने जगाने
कुछ ऐसे हर रात ख्वाब मे आकर मुझे नींद से जगाना
आहिस्ता से मेरी चप्पल पहनना और
मेरा हाथ थाम कर मुझे भी बताना
मुझे भी तारे गिनना सिखाना
आँखें बंद कर किसी का अहसास करना बताना
मुझे भी इन्तेज़ार का मतलब बताना
मुझे मेरी हर कविता मे छुपी वो बात बताना
कभी मुझे भी ख़ुद से प्यार करना सिखाना
मुझे भी औरो से प्यार करना सिखाना
कभी दूर न जाना
कभी मेरे पास से ना जाना
कभी उस पाल पर अकेले न टहलना
हर शाम मुझे शाम होने का मतलब बताना

2nd june closing poem

2nd june opening poem

आज रूठा हुआ एक दोस्त बहुत याद आया
अच्छा गुज़रा हुआ कुछ वक़्त बहुत याद आया
मेरी आँखों के हर अश्क पे रोने वाले
आज जब आँख रोई किसी की तो वो बहुत याद आया
जो मेरे दर्द को सीने मे छुपा लेते हैं
आज जब दर्द हुआ मुझे तो वो बहुत याद आया
जो मेरी आँख मे सपने की तरह रहता हैं
आज सपना टुटा किसी का तो वो बहुत याद आया
जो मेरे दिल के पास था किसी ने उसे दिल से दूर किया
तो वो बहुत याद आया

31st may closing poem

30th may closing poem

29th may closing poem

29th may opening poem

कभी उसे भी मेरी याद सताती होगी
अपनी आँखों मे वो मेरे ख्वाब सजाती होगी
वो जो हर वक़्त मेरे ख्यालो मे बसी रहती हैं
कभी तो मेरी सोच मे खो जाती होगी
वो जिसकी राह मे पलके बिछी रहती हैं
कभी तो मुझे अपने पास बुलाती होगी
मेरी हंसी मे रहती हैं वो हर पल हंसी बनकर
याद कर मुझे कभी वो भी मुस्कुराती होगी
वो जो शामिल हैं मेरी कविता मे
कभी तन्हाई मे कोरे कागज़ पर उंगलिया घुमाती होगी
जिसके लिए मेरा दिल बेकरार रहता हैं
मेरे लिए अपना चैन वो भी तो गंवाती होगी
जिसके लिए मेरी हर रात हैं करवट करवट
कभी तो उसे भी नींद ना आती होगी
मेरी लिए रोशनी का मतलब हैं जो
कभी तो वो मेरी चाहत का दीप मंदिर मे जलती होगी

28th may closing poem

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा तुम्हे पूजा तुम्हे चाह तुम्हे
मेरी खता मेरी वफ़ा तेरे सिवा कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने आंसू बिछाए रात भर
भेजा वाही कागज़ पर उसमे लिखा कुछ भी नहीं
हर शाम की दहलीज़ पर बैठा रहा वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत पर मुह से कहा कुछ भी नहीं
अहसास की तेरे खुशबु यहाँ आवाज़ जुगनुओ की
अब मेरे घर मे इसके सिवा कुछ भी नहीं

दो चार साल की बात हैं दिल खाक मे मिल ही जायेगा
जब आग पर कागज़ रखा बाकि बचा कुछ भी नहीं
सोचा दोस्तों को खुश कर दे उन्हें अपनी यादो मे शामिल कर दे
पर सच मेरी यादो मे तेरे सिवा कुछ भी नहीं

28th may opening poem

हर मोड़ पर जख्म खाती हैं ज़िन्दगी
कभी दर्द तो कभी खुशी से मिलवाती हैं ज़िन्दगी
कभी आंसू पी जाती हैं कभी
हर ज़ख्म मे कुछ नई बात सिखाती हैं ज़िन्दगी
कभी हर साँस बोझ लगती हैं
कभी सिर्फ़ तु ही अपनी लगती हैं
कभी किसी महल के जैसी
तो कभी खँडहर सी लगती हैं
कभी अमावस तरह सारी रात अँधेरी हो जाती हैं
तु हैं मेरी इन हालातो से जुठ्लाती हैं ज़िन्दगी
कभी दर्द से कराहती कभी कंधे थपथपाती हैं ज़िन्दगी
कभी अपने साथ नही देते
कभी पराये जीने नही देते
उम्र के हर पड़ाव पर कितनी ही ठोकरे सिखाती हैं ये
पर हर ठोकर पर बहुत हिम्मटी दिलाती हैं ज़िन्दगी
कर लो दीदार सुनहरे कल का
बस ज़िन्दगी से ढूंढ़ लो एक डगर
जब पक्का होगा इरादा दिल का तो
बड़ा ही आसन होगा ये सफर
(हैं ना ?? )

27th may closing poem

मेरी उदासी को मेरी कमजोरी न समझो
मेरी नम आंखों को मेरी बेबसी न समझो
वो लम्हा ही कुछ ऐसा था जब तुम एक पल मे हमसे बहुत दूर जा रहे थे
न जाने ये बहते आंसू मेरी आंखों के मुझे ये क्या समझा रहे थे
उन्होंने पलट कर देखना गवारा न समझा
और हम उनका इन्तेज़ार किए जा रहे थे
दोस्तों से आज भी कहते हैं कि यार ये तो कल की ही बात हैं
पर न जाने क्यों मेरे सारे दोस्त मुझे कई सालो से कुछ पुराने कैलेंडर दिखा रहे हैं
और मेरी जिंदगी के कई साल किसी के इन्तेज़ार मे बस ऐसे ही गुज़रे जा रहे हैं
इसको मेरी कविता न समझना दोस्त
हम आपको अपना समझ सारे शहर के सामने
अपने दिल का एक पन्ना पढ़ कर बता रहे हैं

26th may closing poem

बेशक कुछ वक़्त का इंतज़ार मिला हमको
पर खुदा से बढ़कर यार मिला हमको
ना रही तमन्ना किसी जन्नत की
तेरी मोहब्बत से वो प्यार मिला हमको
जब तुझे मैंने देखा पहली बार ही अपना लगा
पहले भी हमे कोई यूँ समझने वाला होता
तो आज हम यूँ नासमझ ना होते
काश हम पर भी कोई जान लुटाने वाला होता
तो हमे भी अकेलेपन का मलाल ना होता
पर किसी का होना ना होना
तकदीर की बात होती हैं
हम क्या करे सारे शहर की परियो को छोड़
ये आँखें तेरी सादगी पर बंद होती हैं
तु मान जाए इस शायर की हर बात
यही हैं इस शायर के जज़्बात
चलो अच्छा हुआ तु मेरे घर के पास नहीं रहती
वरना मोहल्ले भर की नज़र मुझ पर ही रहती
अगर मोहब्बर का पता बताने वाले होते
तो तेरी कसम हम शायर ना होते

26th may opening poem

जिसे करनी हैं तेरी बात करे
वरना मुझे से न कोई बात करे
हवा भी नगमे गावे तेरे
मौसम भी बस तेरी ही बात करे
होठ मेरे खामोश रहे
पर आँख जब झपके तो तेरी ही तस्वीर दिखे
मैं तुमसे इज़हार-ऐ प्यार करू
तो प्यार भी तेरी ही बात करे
हसरते हैं हाय दिल मे ये
की हर हसरत भी बस तुझ से ही मुलाकात करे
साथ मेरे कोई रहे न रहे
बस हर याद मे तेरा ही साथ रहे
खो जाऊ मैं एक ख्याल बनकर
बस तेरे ही ख्याल मे
बस खुदा मुझे ऐसे ही प्यारे ख्याल का
एक ख्याल दे

Friday, June 27, 2008

24th may closing poem

दिल अक्सर यही करता हैं ख्वाइश
की अगर तुम हम ख्वाब होते
तारे टूटने का अफ़सोस तो तब भी होता
पर तब शायद इस तरह हम न रोते
तब अपनी ख्वैशो के बगीचों मे
कुछ और उम्मीदों के बीज बोते
ये तड़प का दर्द न होता दिल मे
किसी और ख्वाब के कोई और रास्ते होते
तन्हैया जब कचोटती हमे
किसी के लिए तब हम भी सपने होते
फक्र होता अपनी मोहब्बत पर हमे
बस छुप छुप कर न तकिये मे मुह दाल कर रोते
पर तुम एक हकीकत हो ख्वाब नही
पर काश तुम एक ख्वाब होते

24th may opening poem

सिलसिले ये भी अजीब होते हैं
गम उनको भी नसीब होते हैं
जो लोग खुशनसीब होते हैं
बस होता हैं कोई एक ही अपना
बाकी सब तो रकीब होते हैं
सभी को जिंदगी मे बस दौलत की ख्वाइश हैं
न जाने क्यूँ लोग इतने गरीब होते हैं
जख्म हमको जो अदा करते हैं
वो ही हमारे हबीब होते हैं
दिलो मे दर्द छुपाने वाले
दर्द भी तो बड़े अजीब होते हैं
मौसमो का इन्तेज़ार करते रहते हैं हम बार बार
पर मौसम भी कहाँ हमारी तरह खुशनसीब होते हैं
आंसुओं से दोस्ती करते हैं
हम रात रात जागते हैं
पर क्या करे ये सिलसिले भी अजीब होते हैं

23rd may closing poem

तू कहीं भी रहे सर पर तेरे इल्जाम तो हैं
तेरे हाथो की लकीरों मे मेरा नाम तो हैं
मुझ को तू अपना बना या न बना तेरी खुशी
तू ज़माने मे मेरे नाम से बदनाम तो हैं
देख कर लोग मुझे नाम तेरा लेते हैं
मैं इसी बात से खुश हूँ
मोहब्बत का ये अंजाम तो हैं
बदनाम मेरे प्यार का अफसाना हुआ हैं
दीवाने कहते हैं की ये दीवाना हुआ हैं
बजते हैं ख्यालो मे तेरे नाम से ही घुंघरू
कुछ दिन से मेरे घर भी परियो का आना जाना हुआ हैं
आप हाथो से यूँ चहरे को छुपाते क्यों हो
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यों हो
तुम भी कभी मेरी तरह कर लो इकरार
प्यार करते हो मुझ से तो फ़िर छुपाते क्यों हो

23rd may opening poem

पलके झुकाए जब वो चले आते हैं
देख कर उन्हें हम जिंदगी से चले जाते हैं
उनकी नज़ारे तो अब तक हमसे मिली नही
फ़िर भला क्यों हम चैन से सो नही पाते हैं
वो सुरमई आँखें करती क्यों ऐसी बात हैं
जवाब मे हम भी यार इक ग़ज़ल गुनगुनाते हैं
जिस तरह की खामोश बातों से हाल ऐ दिल कहा जाता हैं
और वो देखिये हाय हमारा दिल चुराते हैं
आप कहें तो अब मैं मेरी आँखें मेरी बातों की तरह कहीं छुपा लू
तेरी आंखों को देख अपने घर का नाम भी चक्षु हाउस बना लू
देखो जामा ये इश्क किन्ना तड़पाता हैं
किसी को आंखों मे बसो और वहीदिल दुखाता हैं
और हमे उसके इस अंदाज़ पर भी बहुत प्यार आता हैं

22nd may closing poem

दूर से कोई आए कहीं
चुपके से दिल मे समां जाए कहीं
रातो को जगाये मेरी नींदे उडाये
अपना दीवाना वो एक चेहरा सब को बनाये
कभी शरमाये प्यार से कभी बहुत इतराए
एक झलक दिखलाकर न जाने वो कहाँ चली जाए
देखे मुझे जब वो आँखें हाय मैं खो जाऊ
तेरी कसम सिर्फ़ तेरा हो जाऊ
इन आंखों के रास्तो से पुरी जिंदगी तेरे नाम करू
तेरी प्यारी बातो से अपना प्यार जताउ
कभी कहू सारी बातें तुझसे कभी जान के भी चुप रहू

22nd may opening poem

आज चाँदनी भी मेरी तरह जाग रही हैं
पलकों पर सितारों को लिए रात खड़ी हैं
ये बात ज़रूरी हैं की वो सूरत के भले
दिल के बुरे न हो
चाँदनी के चाहने वाले तारो से बड़े न हो
गजलो की जुल्फों ने बस उसी से संवरना सीखा
हमने जिन राहो पर देखा सिर्फ़ उसी को देखा
तारो को जिंदगी समझ बैठा था अनजाने मे
इतनी समझ कहाँ थी तेरे दीवाने मे
जाने किस बात की उनको शिकायत मुझसे
नाम तक नही बताया मैंने चाँदनी को अपने किसी फ़साने मे
आज से हमने भी पीना छोड़ दिया
जब देखा नशा ज्यादा हैं तेरी आंखों के पैमाने मे
कोई तो आवाज़ देगा हमे भी वीराने मे

21st may closing poem

जब तनहाई होगी बुझ जायेंगे जब चिराग उम्मीदों के
उससे मुलाक़ात तो होगी पर सिर्फ़ तेरी याद होगी
वक्त रुखसत का जब तेरे होगा
तेरे जाने से पहले मेरा जनाजा सजा होगा
अजीब लगता हैं जब मैं जाने कि बात करता हूँ
पर क्या करू तेरी यादों से ही मेरा दिल चलता हैं
अश्क तेरे अपने अश्को मे छुपा लू
तु उदास हो जाए कभी तो तेरी उदासी को अपना दोस्त बना लू
उदासी से उसकी सारी उदासी चुरा लू
मैं तेरे आंसुओ को अपनी पलकों मे बसा लू
तु बस अपनी पलके झपकाए कभी
और पलके झपकते ही सारी दुनिया को तेरे सामने झुका दू

21st may opening poem

इस बदलते मौसम मे मौसम से मेरा ज़िक्र न करना
इस बदलते मौसम मे मौसम से मेरा ज़िक्र न करना
घर जाओ अगर उसके कभी तो उससे मेरा ज़िक्र न करना
कांटो के बीच रहा हूँ मैं सदा से
(ध्यान से सुनियेगा उदयपुर )
की कांटो के बीच रहा हूँ मैं सदा से
देखना फूलों को ज़रूर से
पर किसी फूल से मेरा ज़िक्र न करना
शयद ये अंधेरे ही अब मुझे राह दिखायेंगे
शायद ये अंधेरे अब मुझे राह दिखायेंगे
बस चाँद सितारों से मेरा ज़िक्र न करना
वो मेरे प्यार को ग़लत नाम न दे दे
(ऐसा होता होगा न आपके साथ भी )
की वो मेरे प्यार को ग़लत नाम न दे दे कहीं
बातें करना दुनिया की उससे पर मेरी बात का ज़िक्र न करना
शायद वो मेरे हाल पर एक बार रो दे
शायद वो मेरे हाल पे एक बार रो दे
बस बारिश के मौसम मे उससे कभी मेरा ज़िक्र न करना
मुझे तो आदत हैं अकेला अकेला सा रहने की
पर उससे कभी किसी अकेलेपन का ज़िक्र न करना
ए हवाओ वो शख्स मिले तुम्हे कभी
तो ज़रूर छूकर आना कभी
छूने पे एक बार आते आते मेरा ज़िक्र ज़रूर करना

20th july closing poem

खूब आती हैं जब भी आती हैं
याद तेरी मुझे बहुत सताती हैं
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
याद तेरी उतर आती हैं
हम रात भर कभी तो करवट लेते हैं
अश्क इन आंखों मे तुझे याद करे तो चले आते हैं
क्या क्या लाल आँखें देख दोस्त फरमाते हैं
पर तेरी यादो की कसम
कसम तेरे वादों की
हम किसी से तेरा नाम नही ले पाते हैं
रोज़ मर मर के मुझे जीने को कहता क्यों हैं
कहता हैं तो चुप रहता क्यों हैं

20 th may opening poem

तेरी यादों के बिना कोई लम्हा गुज़ारा नही
एक पल नही जब हमने तुम्हे पुकारा नही
मेरी नाकामियों का इतना भी गम न कीजिये
अगर तू जीता हैं तो मैं हारा नही
तेरी यादें कैसे उतर जाए चहरे से
तुझे तो मैंने अब तक दिल से उतारा नही
कर रखा हैं जिसने सरे घर मे उजाला
वो आंसू हैं मेरे कोई टुटा तारा नही
किसको गले लगाकर अब रोये हम
तू हैं साथ तो आंसू नही
तेरे जाने के बाद कोई हमारा नही
मर्जे इश्क हैं ख़ुद गुलाम तुम्हारा
तुम्हे याद करना तुझ को मिस करना
मेरे पास और कोई चारा नही
रोज़ सोचता हूँ तुझसे कैसे करू बात
पर बहनों पर ज़ोर आज़माइश करू
मैं ऐसा दीवाना नही

Thursday, June 26, 2008

19th may closing poem

तेरी मुलाकात को याद करते हैं
इसी तरह रात से दिन और दिन से रात करते हैं
तेरी मुलाकात को याद करते हैं
इसी तरह रात से दिन और दिन से रात करते हैं
मुस्कुराके अपने गमो को छुपा लेते हैं
बस तुझे एक बार और देख लू
यही दुआ हर पल करते हैं
ईद चली गई और ले गई मेरे साजन को - २
चाँद को देखकर ये ईद जल्दी आ जाए
बस यही बात अपने दिल से रोज़ करते हैं
शुक्र करते हैं उस खुदा का
कुछ दिन के लिए ही सही उसने
तुझसे मुलाकात तो करायी

खुशियों से थोडी देर के लिए ही सही
मेरी बात तो करायी
तुझसे छोटी सी एक मुलाकात हो
तेरी मुलाकात का इन्तेज़ार करते करते
न जाने कैसे उस दिन रात हो गई
जल्दी मिल लो अब मुझसे
रहा जाता नही अब मुझसे
की कुछ दिन से ऐसी हालत हो गई
तेरी याद से मेरी एक मुलाकात हो गई

19th may opening poem

हाय भगवान तू भी ये कैसा रिश्ता बनता हैं
एक तरफ़ तो दिल उनके लिए बैचैन रहता हैं
दूसरी तरफ़ से न कोई जवाब आता हैं
जलती थी समां उनके मन मे हमारे लिए
कुछ दे दो थोडी जगह उनके दिल मे
इसमे तेरा क्या जाता हैं
बस एक ही ख्याल मेरे दिल मे बार बार आता हैं
अगर कुछ नही तू मेरे लिए
क्यों अंधेरे मे भी एक साया
मुझे साफ़ साफ़ नज़र आता हैं

17th may closing poem

आजकल नींद नही आती
तेरी याद मुझे बहुत सताती हैं
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
आजकल तो तू मेरे सामने चली आती हैं
(ऐसा सबके साथ होता होगा न उदयपुर )
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
आजकल तो तू मेरे सामने चली आती हैं
हम रात भर तो करवट लेते हैं कभी
हम रात भर तो करवट लेते हैं कभी
पर जिस दिन तू नज़र आ जाए चैन से सोते हैं तभी
अश्क तेरे कभी तेरी आँख से निकले
अश्क तेरे कभी तेरी आँख से निकले
तो पता चलता हैं मेरे सामने न होने के बाद भी
तू मुझे बहुत याद करता हैं
मेरी आँख लाल देखकर दोस्त ये फरमाते हैं
क्या हुआ ? सोये नही रातो से
या चाँद सितारों के बहने नज़र आते हैं
पर तेरी यादो की कसम
कसम तेरे वादों की
हम किसी से तेरा नाम नही ले पाते हैं
रोज़ मर मर कर जीने को कहता हैं ज़माना
पर हम ज़माने के सामने प्यार करते हैं तुझसे किसी से नही कह पाते

17 th may opening poem

वो चेहरे पे बनावट का गुस्सा
आंखों से छलकता प्यार भी हैं
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी हैं
इनकार भी हैं
कल मिला वक्त तो जुल्फे तेरी सुलझा दूंगा
आज तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ कल ख़ुद वक्त को उलझा दूंगा
दिल को मानना अगर होता आसान
ना करता किसी को ये यूँ परेशान
अकेला ना रहता दोस्तों के बीच
ना होती ऐसी हालत जो ना हो बयान
खोजता रहता हूँ कुछ पल तेरे जैसे
पर मिलते कहाँ हैं ऐसे पल
कभी तेरे जैसे कभी मेरे जैसे
तभी तो वो ख्वाबो मे भी लगती हैं ख्यालो जैसी
तेरे बिन जिंदगी ना ख्वाब जैसी ना खयालो जैसी

16th may closing poem

जिंदगी को न बना ले वो सज़ा मेरे बाद
हौंसला देना उन्हें खुदा मेरे बाद
क्योंकि वो आजकल लिखने लगी हैं मेरा नाम
खुदा तेरे नाम के बाद
कौन घूँघट को उठावेगा उसे चाँद कहकर
और फ़िर वो किससे करेगी वफ़ा मेरे बाद
आजकल खाने की थाली भी उससे नाराज़ सी रहती हैं
वो अब खाना खाती हैं मेरे खाने के बाद
फ़िर ज़माने मे मोहब्बत की न कोई परछाई होगी
भले ही ये सूरज रोज़ निकलेगा मेरे जाने के बाद
रोएगी सिसकिया ले लेकर मोहब्बत भी मेरे जाने के बाद
फ़िर बेवफाई पढ़ाएगी वफ़ा का पाठ
एक दिन देखना मेरे जाने के बाद

16th may opening poem

एक नज़र देख कर हम जान गए
आप क्या हैं हमारे लिए हम पहचान गए
फ़िर भी जिंदा हूँ ये अजब बात हैं
कब से वो लेकर मेरी जान गए
तुम तो ए थे मिलाने किसी और से
पर हम दिल से गए ईमान से
तेरी अदा करती तुझे दुनिया से जुदा
तेरी वो बालो की लटे
वो तेरा नज़ारे झुका झुका कर बात करना
वो तेरा कहना नही कहना
जो न कहना वो उन नज़रो से कहना
जिस राह पर फ़रिश्ते भी न पहुंचे
तुझे एक पल देखने के बाद हम वहा पहुंचे
गए जान से ईमान से
दीवाना उस दिन से लोग कहते हैं
हम चुप कभी कभी
कभी कभी हम भी चुप चुप रहते हैं