Friday, June 27, 2008

23rd may opening poem

पलके झुकाए जब वो चले आते हैं
देख कर उन्हें हम जिंदगी से चले जाते हैं
उनकी नज़ारे तो अब तक हमसे मिली नही
फ़िर भला क्यों हम चैन से सो नही पाते हैं
वो सुरमई आँखें करती क्यों ऐसी बात हैं
जवाब मे हम भी यार इक ग़ज़ल गुनगुनाते हैं
जिस तरह की खामोश बातों से हाल ऐ दिल कहा जाता हैं
और वो देखिये हाय हमारा दिल चुराते हैं
आप कहें तो अब मैं मेरी आँखें मेरी बातों की तरह कहीं छुपा लू
तेरी आंखों को देख अपने घर का नाम भी चक्षु हाउस बना लू
देखो जामा ये इश्क किन्ना तड़पाता हैं
किसी को आंखों मे बसो और वहीदिल दुखाता हैं
और हमे उसके इस अंदाज़ पर भी बहुत प्यार आता हैं

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