Friday, June 27, 2008

20th july closing poem

खूब आती हैं जब भी आती हैं
याद तेरी मुझे बहुत सताती हैं
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
याद तेरी उतर आती हैं
हम रात भर कभी तो करवट लेते हैं
अश्क इन आंखों मे तुझे याद करे तो चले आते हैं
क्या क्या लाल आँखें देख दोस्त फरमाते हैं
पर तेरी यादो की कसम
कसम तेरे वादों की
हम किसी से तेरा नाम नही ले पाते हैं
रोज़ मर मर के मुझे जीने को कहता क्यों हैं
कहता हैं तो चुप रहता क्यों हैं

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