Monday, June 30, 2008

12th june closing poem

अपने प्यार अपने जज़्बात से हार गया
सब जीत गये इस मौसम मे
और मैं इस मौसम से हार गया
वो छुपाती रही सबसे मेरी बातें
(पता नही क्यों !! )
वो छुपाती रही सबसे मेरी बातें
और मैं दुनिया को तेरी बातें बताते बताते हार गया
(आपके साथ भी ऐसा होता होगा न कि जब आप किसी से बेइंतेहा प्यार करते हैं तो बस टॉपिक उसी का होता हैं यार वो ऐसा दिखता हैं वो ऐसे बोलता हैं ऐसी बातें करता हैं ऐसे सोचता हैं ऐसे खाना खाता हैं ऐसे डांस करता हैं न जाने क्या क्या !! जी )
रेत को हीरे की तरह हाथो मे सम्हाला
पर मैं रेत पर तेरा नाम लिखते लिखते हार गया
कुछ लम्हों को मैंने इस तरह पकड़ा
कि पुरी जिंदगी मैं उन्हें सम्हालता सम्हालता हार गया
बनकर मोती जो आंखों से आंसू भी न बहा पाये
ऐसे बेजुबान प्यार को मैं जुबां देते देते हार गया
तेरे शब्दों की दुनिया मे कई जिंदगिया जी ली मैंने
(जब किसी से किसी को प्यार से i love u कहा उसके बाद की बात हैं )
कि तेरे शब्दों की दुनिया मे कई जिंदगिया जी ली मैंने
बस तेरे नाम के साथ अपना घर बसाता बसाता न जाने मैं कैसे हार गया

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