Monday, June 30, 2008

18th june closing poem

मोहब्बत की जुबां छोडो
मेरी जुबां तो समझो
धुप ही धुप निकली हैं आज तो
ए बादलो टूट कर मुझ पर आज तो बरसो
जैसे शहरो मे हर शाम हवा चलती हैं
तुम इस तरह मुझमे चलो
और मुझे सबसे अलग कर दो
तुम छुपा लो मेरा दिल क़ैद मे अपनी
और मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मैं कोई मसला हूँ तो मुह न फेरो मुझसे
अपनी चाहत से मेरे पास बैठकर मुझे बस हल कर दो
अपने गमो से कहो किवो हर पल बस मेरे साथ रहे
ये अहसास अपने होने का बस यही अहसास मेरे नाम कर दो

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