Monday, June 30, 2008

25th june evening poem

आज इन हवाओ मे भी अलग अंदाज़ हैं
आप हमसे दिर होके भी हमारे दिल के बहुत पास हैं
जबसे बहाए हैं रंग तुमने मेरी दुनिया मे
तबसे ही इस दिल मे दोबारा जीने की आस हैं
अरमान था तो बस तुझे पाने का
गम हैं तो बस तेरे शहर से चले जाने का
इससे बढ़कर क्या होगी हद मेरी दीवानगी की
कि अभी तक करता हूँ इन्तेज़ार तेरे लौट आने का
जनता हूँ कि तू सुनती हैं इस पल मुझे कान लगाकर
तभी तो गम हैं कमबख्त शो ख़तम करके जाने का
कोई तो बहाना बना मेरे घर आने का
इन्तेज़ार करता हैं ये दीवाना पलके बिछाकर
मोहब्बत के फलक से उतर आने का
जिंदगी बार बार एक चीज़ सिखाती हैं
जब कोई दूर जाता हैं तो उसके होने की कमी बताती हैं

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