Thursday, June 26, 2008

17th may closing poem

आजकल नींद नही आती
तेरी याद मुझे बहुत सताती हैं
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
आजकल तो तू मेरे सामने चली आती हैं
(ऐसा सबके साथ होता होगा न उदयपुर )
धुप मे छाँव मे नींद मे भी
आजकल तो तू मेरे सामने चली आती हैं
हम रात भर तो करवट लेते हैं कभी
हम रात भर तो करवट लेते हैं कभी
पर जिस दिन तू नज़र आ जाए चैन से सोते हैं तभी
अश्क तेरे कभी तेरी आँख से निकले
अश्क तेरे कभी तेरी आँख से निकले
तो पता चलता हैं मेरे सामने न होने के बाद भी
तू मुझे बहुत याद करता हैं
मेरी आँख लाल देखकर दोस्त ये फरमाते हैं
क्या हुआ ? सोये नही रातो से
या चाँद सितारों के बहने नज़र आते हैं
पर तेरी यादो की कसम
कसम तेरे वादों की
हम किसी से तेरा नाम नही ले पाते हैं
रोज़ मर मर कर जीने को कहता हैं ज़माना
पर हम ज़माने के सामने प्यार करते हैं तुझसे किसी से नही कह पाते

No comments: