जब दास्ताँ हम कहेंगे
करेंगे ना तेरा जिक्र भी हम
मगर ना फिक्र कर तु
लेंगे ना तेरा नाम तक भी हम
सुनते रहे सबके दिलो की दास्ताँ हम
कह तक ना सके अपना हाल - ए -दिल भी हम
अपने सभी अजनबी लगे जो राह मे मिले
अभी घर से चले थे बस दो ही कदम हम
क्यों वक़्त बेरुखी से कटा जब बात किसी से भी की
रहते हैं खूब खुश जब मिलते हैं खुद से हम
शहरो मे तो हर किसी की कहानी हैं हारी सी
नयी ज़िन्दगी जीने चले गाँव की तरफ हम
ज़िन्दगी एक दिन मे सिमट गयी ऐसी कि
सूरज के सामने जलते रहे बन के दीप हम
No comments:
Post a Comment