Monday, June 30, 2008

29th may opening poem

कभी उसे भी मेरी याद सताती होगी
अपनी आँखों मे वो मेरे ख्वाब सजाती होगी
वो जो हर वक़्त मेरे ख्यालो मे बसी रहती हैं
कभी तो मेरी सोच मे खो जाती होगी
वो जिसकी राह मे पलके बिछी रहती हैं
कभी तो मुझे अपने पास बुलाती होगी
मेरी हंसी मे रहती हैं वो हर पल हंसी बनकर
याद कर मुझे कभी वो भी मुस्कुराती होगी
वो जो शामिल हैं मेरी कविता मे
कभी तन्हाई मे कोरे कागज़ पर उंगलिया घुमाती होगी
जिसके लिए मेरा दिल बेकरार रहता हैं
मेरे लिए अपना चैन वो भी तो गंवाती होगी
जिसके लिए मेरी हर रात हैं करवट करवट
कभी तो उसे भी नींद ना आती होगी
मेरी लिए रोशनी का मतलब हैं जो
कभी तो वो मेरी चाहत का दीप मंदिर मे जलती होगी

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