Monday, June 30, 2008

17th june opening poem

टूटे हुए ख्वाबो मे हकीकत ढूंढ़ता हूँ
पत्थर के दिलो मे मोहब्बत ढूंढ़ता हूँ
नादान हूँ मैं अब तक ये न समझा
बेजान बुतों मे क्यों मैं इबादत ढूंढ़ता हूँ
मेरे जज्बातों की कीमत यहाँ कुछ भी नही
बेईमानी के बाजारों मे शराफत ढूंढ़ता हूँ
इस अजनबी दुनिया मे कहने को तो कोई भी अपना नही
गैरो की आंखों मे मैं अपनी सूरत ढूंढ़ता हूँ
उम्मीद की थी प्यार की बस
शायद यही खता हुई
गैर हुए अश्को मे आजकल मैं अपनी खुशी ढूंढ़ता हूँ
गुज़र जाते हैं रोजाना कई बादल मेरी छत से
मैं मेरी छत पर रुकने वाले बदल का पता ढूंढ़ता हूँ
नया घर लेने की कबसे सोच रहा हूँ
पर पुरानी यादो को फुर्सत से समेटने का मैं वक्त ढूंढ़ता हूँ
ढूंढ़ता हूँ मैं तुझे अपनी हर छोटी बड़ी बात मे
अपने दिल को भी मैं आजकल तेरी बड़ी आंखों मे ढूंढ़ता हूँ
क्या ढूंढे क्या खोजे जब मैं ख़ुद खुदा से आजकल अपने होने की वजह ढूंढ़ता हूँ

No comments: