Thursday, June 26, 2008

19th may opening poem

हाय भगवान तू भी ये कैसा रिश्ता बनता हैं
एक तरफ़ तो दिल उनके लिए बैचैन रहता हैं
दूसरी तरफ़ से न कोई जवाब आता हैं
जलती थी समां उनके मन मे हमारे लिए
कुछ दे दो थोडी जगह उनके दिल मे
इसमे तेरा क्या जाता हैं
बस एक ही ख्याल मेरे दिल मे बार बार आता हैं
अगर कुछ नही तू मेरे लिए
क्यों अंधेरे मे भी एक साया
मुझे साफ़ साफ़ नज़र आता हैं

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