वो एक अहसास जो कहता था
मुझे तुझसे प्यार हैं
कैसे करू यकीं
यकीं नही आता
उसे मुझ पर ऐतबार हैं
वो चाहती हैं न हो नम मेरी आँख कभी
लेकिन हर खुशी के बाद भी
उसकी हर खुशी पूरी हो दिल को इन्तेज़ार हैं
अब वो कहती हैं वो मेरी सिर्फ़ मेरी
हाँ ये हकीक़त हैं पर क्यों इससे मुझे इनकार हैं
मैं यहीं चाहू की कोई न देखे उसे मेरे सिवा
मुझे चाहत के मलाल मे अपना साया भी न गावर हैं
वो मेरा चाँद हैं कहीं नज़र न लगे उसको
मैं आज भी उसी की बदौलत जिंदा हूँ
ये ख़बर न लगे उसको
भले कुछ न मिले मुझको
पर बिना मांगे सब दे देना उसको
No comments:
Post a Comment