Monday, June 30, 2008

21st june opening poem

वो एक अहसास जो कहता था
मुझे तुझसे प्यार हैं
कैसे करू यकीं
यकीं नही आता
उसे मुझ पर ऐतबार हैं
वो चाहती हैं न हो नम मेरी आँख कभी
लेकिन हर खुशी के बाद भी
उसकी हर खुशी पूरी हो दिल को इन्तेज़ार हैं
अब वो कहती हैं वो मेरी सिर्फ़ मेरी
हाँ ये हकीक़त हैं पर क्यों इससे मुझे इनकार हैं
मैं यहीं चाहू की कोई न देखे उसे मेरे सिवा
मुझे चाहत के मलाल मे अपना साया भी न गावर हैं
वो मेरा चाँद हैं कहीं नज़र न लगे उसको
मैं आज भी उसी की बदौलत जिंदा हूँ
ये ख़बर न लगे उसको
भले कुछ न मिले मुझको
पर बिना मांगे सब दे देना उसको

No comments: