Friday, June 27, 2008

23rd may closing poem

तू कहीं भी रहे सर पर तेरे इल्जाम तो हैं
तेरे हाथो की लकीरों मे मेरा नाम तो हैं
मुझ को तू अपना बना या न बना तेरी खुशी
तू ज़माने मे मेरे नाम से बदनाम तो हैं
देख कर लोग मुझे नाम तेरा लेते हैं
मैं इसी बात से खुश हूँ
मोहब्बत का ये अंजाम तो हैं
बदनाम मेरे प्यार का अफसाना हुआ हैं
दीवाने कहते हैं की ये दीवाना हुआ हैं
बजते हैं ख्यालो मे तेरे नाम से ही घुंघरू
कुछ दिन से मेरे घर भी परियो का आना जाना हुआ हैं
आप हाथो से यूँ चहरे को छुपाते क्यों हो
मुझ से शरमाते हो तो सामने आते क्यों हो
तुम भी कभी मेरी तरह कर लो इकरार
प्यार करते हो मुझ से तो फ़िर छुपाते क्यों हो

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