दिल की आग के इस धुएँ मे मंजिल खो बैठे
तेरी याद ऐसी आई कि सांस लेना भूल बैठे
शायद किसी सपने मे तेरी एक झलक देखि होगी
इस उम्मीद मे आँखें खोलना भूल बैठे
हम थे नादान जो एक उड़ते बादल को
अपनी मंजिल कह बैठे
सोचा था क्या और क्या कर बैठे
जिस पर हम जीते मरते हैं वो तो बेखबर
और हम उसकी मोहब्बत मे ना जाने क्या क्या
खुद पर ही सितम कर बैठे
No comments:
Post a Comment