वो चेहरे पे बनावट का गुस्सा
आंखों से छलकता प्यार भी हैं
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी हैं
इनकार भी हैं
कल मिला वक्त तो जुल्फे तेरी सुलझा दूंगा
आज तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ कल ख़ुद वक्त को उलझा दूंगा
दिल को मानना अगर होता आसान
ना करता किसी को ये यूँ परेशान
अकेला ना रहता दोस्तों के बीच
ना होती ऐसी हालत जो ना हो बयान
खोजता रहता हूँ कुछ पल तेरे जैसे
पर मिलते कहाँ हैं ऐसे पल
कभी तेरे जैसे कभी मेरे जैसे
तभी तो वो ख्वाबो मे भी लगती हैं ख्यालो जैसी
तेरे बिन जिंदगी ना ख्वाब जैसी ना खयालो जैसी
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