मेरे लम्हों की दास्ताने अगर तुम कहो तो सुनु तुमको
बहुत साल हम जागते रहे हैं चलो अब ज़रा जगाउ तुमको
तुम ही हो जो रोशनी से हमारी आँखों मे आ बसे हो
जब अपनी आँखें ही कह दिया तो और क्या बुलाऊ तुमको
तुम ऐसा करना कि एक लम्हे को अपनी धड़कन पे सजा लेना
अगर मेरी वफ़ा मेरे जज़्बात कभी याद आये तुमको
मोहब्बत हम रिश्तो मे तलाश कर के थक गए
कहाँ जाके बसे हो कहाँ से ढूंढ़ लाये तुमको
तुम्हे तो सूरत मुबारक सुख मे हम याद भी नहीं
मगर बताओ कि अपनी बातो मे कैसे भुलाये तुमको
तुम अपने हुस्न का गुरुर करते हो
पर हम अपनी खुद्दारी मे मगरूर हैं ये बात कैसे बताये तुमको
कह दो कि ये जूठ हैं कि तुमने उसे भुला दिया
जिसने दिन रात सुबह शाम हर एक लम्हा
अपनी यादो मे सजा रखा हैं तुमको
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