Monday, June 30, 2008

27th june closing poem

आगाज़ तो होता हैं अंजाम नही होता
जब मेरी कहानी मे उसका नाम नही होता
आगाज़ तो होता हैं अंजाम नही होता
जब मेरी कहानी मे उसका नाम नही होता
जब जुल्फ की कालिख घुल जाए कहीं
बदनाम साहिल होता हैं पर वो गुमनाम नही होता
एक मौका दे जिंदगी तेरे पास आने का
तेरा हाथ छूने का
मगर ये इनाम हर किस्मत मे
हर शक्स के साथ नही होता
बहते हैं आंसू जब भी तेरी आंखों से
हम उन्हें थाम लेते हैं
पर मेरा पैगाम कोई तुझ तक न पहुंचाए
फिर वो पैगाम नही होता
करवाते बदलती हैं रात साडी चाँदनी के साथ
चाँदनी कहाँ चली जाती हैं
सूरज पे आने पे कहाँ छुप जाती हैं
प्यार बहुत करती हैं पर उस चाँदनी का कोई नाम नही होता

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