बहला चूका हूँ मन को जूठी तसल्लियों से
पोंछे हैं आंसू अपनी हथेलियों से
जो हाथ होता तेरा तो तकिया बना के सोता
रोके हैं आंसू तेरे हाथो की लकीरों से
तुम थोडा और पास आती तो धडकनों को सुनती
मैंने बटन टाँके हैं अपनी ही उंगलियों से
धागा दिल का जुड़ गया जब दांतों से तुमने उसे काटा
बटनों का मन कहे ये तेरे कानो की बालियों से
दीवार पूछती हैं तेरी आँखों की पुतलियों से
फूलो का फिर एक बार फेरा लगाने आना
काँटा हूँ मैं कहता यही खुबसूरत तितलियों से
अँधेरा चाहे कितना भी घना क्यों ना हो
तेरा साया साफ़ नज़र आता हैं उन जालियों से
बस प्यार हैं तुझसे तुझ से ही रहेगा
चाहे मुलाकात हो रोज़ कितनी भी परियो से
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