Monday, June 30, 2008

26th june closing poem

कल तेरी कुछ चिठ्ठिया रख दी हमने फूलों के संग
पहले उन फूलों मे आती थी खुशबु
पर तेरे खातो को देखने के बाद
खुशबू चली गई न जाने किसके संग
अब हमे काला रंग ही अच्छा लगता हैं
क्यूंकि काले रंग पे कोई और रंग कहाँ चढ़ता हैं
तू बहुत खुबसूरत
(आय हाय !!)
तू बहुत खुबसूरत मैं बस ठीक ठाक हूँ
पर देखे जो भी तुझे मेरे संग
रह जाता हैं वो दंग
सोचा हैं कभी फुर्सत मे बैठेंगे हम तेरे संग
सोचा हैं कभी फुर्सत मे बैठेंगे हम तेरे संग
दोहराएंगे उन चिठ्ठियों का लेखाजोखा पर सिर्फ़ तेरे संग
फुर्सत मिलती ही नही
कि आजकल फुर्सत मिलती ही नही कि हम हो तेरे संग
बस तेरी लिखी वो चिठ्ठिया पढ़ लेते हैं
और याद जब ज्यादा आती हैं
तो उन्हें उन फूलों के संग रख देते हैं


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