Monday, June 30, 2008

24th june closing poem

दो दिल जहाँ मिलेंगे कुछ बात हो ही जायेगी
पहली ही मुलाक़ात मे उससे कुछ बात शायद हो ही जायेगी
सताएगी तेरी याद बाद मे पर तुझसे कुछ पलो की बात तो शायद हो ही जायेगी
चेहरा दिखाई देगा मन बनाएगा परछाइया
पर फिर भी मिलेंगे छुप के देखना ये मंजिल उसी दिन नज़र आएगी
शहर के कुछ लोगो न न विशवास किया मेरे फैसले पर
एक दिन देखना तेरी दुआएं उन सब का सर भी शर्म से झुकयेगी
हँसी उडाते हैं गली मोहल्लो मे खड़े होकर बातें बनाते हैं
सच कहू ऐसे लोग कभी कुछ नही बन पाते हैं
बस भरोसा ख़ुद पर रखो अपने सपनो से मोहब्बत करो
हर जुबां पे रहो ऐसा काम करो
बस खूब सारा काम करो और बहुत सारा नाम करो

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