Monday, June 30, 2008

14th june closing poem

तुम्हारी राष्ट्र सेवा पर जब मुस्कुराने लगे लोग
तुम्हे तुम्हारा भविष्य दिखा कर डराने लगे लोग
तो मत घबराना डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर बात को मगर धैर्य से सहना
ग्रेट वाल की भांति कभी न ढहना
इनमे से कईयो ने तेरी तरह शुरुआत की थी
तब इस ज़माने ने उन पर भी आघात की थी
हथियार जब डाल दिए तब भीड़ ने ढेरो हाथ दिए
अब ये भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारी नीड़ हैं
ये तो खुनी राहो पर चिराग जलाते रहेंगे
किसी के जागने पर उसे सुलाते रहेंगे
मात्रभाषा मात्रभूमि पर पर त्याग करो
वरना ये लोग तो नस्लों को खोखला करते रहेंगे

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