Monday, June 30, 2008

28th june opening poem

दिल मे अगर खामोश बातो के फलसफे ना होते
हम उनकी मोहबात मे यूँ पागल ना होते
बैठते हम भी पल दो पल के लिए उनके पहलु मे
अगर नसीब अपने इस कदर ख़राब ना होते
सुन लेते वो जो मेरी आखिरी गुजारिश को
घर के बाहर उनके दिल के इतने बीमार ना होते
पढ़ लेते जो वो मेरे चेहरे की हर बात को
ज़िन्दगी मे फिर मेरी इतने सवाल ना होते
छुपा लेते जो वो मेरी मोहब्बत को
ज़माने के लिए फिर हम खुली किताब ना होते
आ जाते मेरे एक बार बुलाने पर वो जो
हमारी ज़िन्दगी मे इंतज़ार के मायने ना होते
चलो कुछ काम जान बुझ कर करती हैं वो
शायद हमारी तरह हमे थोडा प्यार करती हैं वो
ये थोडा प्यार ही बहुत सारी ज़िन्दगी के लिए
बिना मांगे ही दे दे दीवाना उसकी ख़ुशी के लिए

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