Monday, June 30, 2008

28th may opening poem

हर मोड़ पर जख्म खाती हैं ज़िन्दगी
कभी दर्द तो कभी खुशी से मिलवाती हैं ज़िन्दगी
कभी आंसू पी जाती हैं कभी
हर ज़ख्म मे कुछ नई बात सिखाती हैं ज़िन्दगी
कभी हर साँस बोझ लगती हैं
कभी सिर्फ़ तु ही अपनी लगती हैं
कभी किसी महल के जैसी
तो कभी खँडहर सी लगती हैं
कभी अमावस तरह सारी रात अँधेरी हो जाती हैं
तु हैं मेरी इन हालातो से जुठ्लाती हैं ज़िन्दगी
कभी दर्द से कराहती कभी कंधे थपथपाती हैं ज़िन्दगी
कभी अपने साथ नही देते
कभी पराये जीने नही देते
उम्र के हर पड़ाव पर कितनी ही ठोकरे सिखाती हैं ये
पर हर ठोकर पर बहुत हिम्मटी दिलाती हैं ज़िन्दगी
कर लो दीदार सुनहरे कल का
बस ज़िन्दगी से ढूंढ़ लो एक डगर
जब पक्का होगा इरादा दिल का तो
बड़ा ही आसन होगा ये सफर
(हैं ना ?? )

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