Thursday, June 26, 2008

16th may closing poem

जिंदगी को न बना ले वो सज़ा मेरे बाद
हौंसला देना उन्हें खुदा मेरे बाद
क्योंकि वो आजकल लिखने लगी हैं मेरा नाम
खुदा तेरे नाम के बाद
कौन घूँघट को उठावेगा उसे चाँद कहकर
और फ़िर वो किससे करेगी वफ़ा मेरे बाद
आजकल खाने की थाली भी उससे नाराज़ सी रहती हैं
वो अब खाना खाती हैं मेरे खाने के बाद
फ़िर ज़माने मे मोहब्बत की न कोई परछाई होगी
भले ही ये सूरज रोज़ निकलेगा मेरे जाने के बाद
रोएगी सिसकिया ले लेकर मोहब्बत भी मेरे जाने के बाद
फ़िर बेवफाई पढ़ाएगी वफ़ा का पाठ
एक दिन देखना मेरे जाने के बाद

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