Monday, June 30, 2008

18th june opening poem

मुझ से मत पूछो कि क्यों आँख झुका ली
तेरी तस्वीर ही बची थी पास मेरे
वो क्यों सबसे छुपा ली
जिसपे लिखा था तु मेरे मुक़द्दर मे नहीं
अपने माथे की वो लकीर मिटा ली मैंने
हर जन्म सबको यहाँ सच्चा प्यार कहाँ मिलता हैं
तेरी चाहत मे एक उम्र बीता ली मैंने
मुझको जाने कहाँ एहसास मेरे ले आये
एक ही मोमबत्ती बची थी दराज़ मे मेरे
तेरी याद आई तो दिन मे ही जला ली मैंने
रहती हैं मेरी साँसों मे तेरी खुशबु
तेरी साँसों की गर्मी से ठंडक पा ली मैंने
मेरी एक बात को सुन कर जब वो बहुत रोये
बस वही एक बात आपसे छुपा ली मैंने
तेरी याद यूँ तो रोज़ आती हैं
उस दिन ज्यादा आई तो
यादो की डोली सजा ली मैंने

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