मेरी उदासी को मेरी कमजोरी न समझो
मेरी नम आंखों को मेरी बेबसी न समझो
वो लम्हा ही कुछ ऐसा था जब तुम एक पल मे हमसे बहुत दूर जा रहे थे
न जाने ये बहते आंसू मेरी आंखों के मुझे ये क्या समझा रहे थे
उन्होंने पलट कर देखना गवारा न समझा
और हम उनका इन्तेज़ार किए जा रहे थे
दोस्तों से आज भी कहते हैं कि यार ये तो कल की ही बात हैं
पर न जाने क्यों मेरे सारे दोस्त मुझे कई सालो से कुछ पुराने कैलेंडर दिखा रहे हैं
और मेरी जिंदगी के कई साल किसी के इन्तेज़ार मे बस ऐसे ही गुज़रे जा रहे हैं
इसको मेरी कविता न समझना दोस्त
हम आपको अपना समझ सारे शहर के सामने
अपने दिल का एक पन्ना पढ़ कर बता रहे हैं
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