Monday, June 30, 2008

25th june opening poem

आपको भूल जाए हम इतने बेवफा नही
आपसे क्या गिला करे आपसे कुछ गिला ही नही
सबसे मिलाना दिल तोड़ना उनका तो खेल हैं
हमसे ही भूल हो गई उनकी कोई खता नही
काश वो अपने गम मुझे देते तो कुछ सुकून मिलता
वो कितने बदनसीब हैं जिन्हें दुनिया मे गम मिला ही नही
जुर्म हैं अगर वफ़ा तो क्या करू मैं वफ़ा को छोड़ दू
कहते हैं इस गुनाह की होती कोई सज़ा भी नही
गम मिलते हैं और चले जाते हैं
पर दोस्त ये गम ही जिंदगी जीना सिखाते हैं
हौंसला ख़ुद पे रखना हर पल अपने सपने के संग चलना
चलना ज़रूर रुकना नही क्यूंकि कभी कभी दोस्त ही अपने अपना रास्ता डिगते हैं
हम हैं तो सब हैं और सब हैं तो हम हैं
क्यूंकि अब हम गम को भी हँसाना सिखाते हैं
सब भूल जाए लेकिन उसे तुझसे प्यार करना सिखाते हैं

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