Friday, June 27, 2008

24th may opening poem

सिलसिले ये भी अजीब होते हैं
गम उनको भी नसीब होते हैं
जो लोग खुशनसीब होते हैं
बस होता हैं कोई एक ही अपना
बाकी सब तो रकीब होते हैं
सभी को जिंदगी मे बस दौलत की ख्वाइश हैं
न जाने क्यूँ लोग इतने गरीब होते हैं
जख्म हमको जो अदा करते हैं
वो ही हमारे हबीब होते हैं
दिलो मे दर्द छुपाने वाले
दर्द भी तो बड़े अजीब होते हैं
मौसमो का इन्तेज़ार करते रहते हैं हम बार बार
पर मौसम भी कहाँ हमारी तरह खुशनसीब होते हैं
आंसुओं से दोस्ती करते हैं
हम रात रात जागते हैं
पर क्या करे ये सिलसिले भी अजीब होते हैं

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