Thursday, June 26, 2008

19th may closing poem

तेरी मुलाकात को याद करते हैं
इसी तरह रात से दिन और दिन से रात करते हैं
तेरी मुलाकात को याद करते हैं
इसी तरह रात से दिन और दिन से रात करते हैं
मुस्कुराके अपने गमो को छुपा लेते हैं
बस तुझे एक बार और देख लू
यही दुआ हर पल करते हैं
ईद चली गई और ले गई मेरे साजन को - २
चाँद को देखकर ये ईद जल्दी आ जाए
बस यही बात अपने दिल से रोज़ करते हैं
शुक्र करते हैं उस खुदा का
कुछ दिन के लिए ही सही उसने
तुझसे मुलाकात तो करायी

खुशियों से थोडी देर के लिए ही सही
मेरी बात तो करायी
तुझसे छोटी सी एक मुलाकात हो
तेरी मुलाकात का इन्तेज़ार करते करते
न जाने कैसे उस दिन रात हो गई
जल्दी मिल लो अब मुझसे
रहा जाता नही अब मुझसे
की कुछ दिन से ऐसी हालत हो गई
तेरी याद से मेरी एक मुलाकात हो गई

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