वो पूछती हैं मुझसे चाँद की बस्ती कहाँ हैं
मैं इस बात पर ईद का इंतज़ार करता हूँ
वो पूछती हैं मुझसे कौन सूरज मे सुलगता हैं
मैं बस चुप रह कर खुद ही खुद उलझता हूँ
वो पूछती हैं रूह की लरज़िश के बारे मे
मैं क्या कुछ कहू बस चुप रहता हूँ
वो बोली सावन मे अब वो रंग क्यों नहीं
मैंने कहा बस इतना कि तेरे बिना आँख नाम हैं
सबसे छुपा कर दर्द जो वो मुस्कुरा दिया
उसकी इसी बात ने हमे रुला दिया
आँखों से उठ रहा था दर्द का धुआं
चेहरे बता रहे थे हमने अपना सब कुछ गवा दिया
जाने उसे लोगो से थी क्या शिकायते
तन्हाइयो के डेरे मे मुझ बातुने को बुला दिया
आवाज़ मे था ठहराव आँखों मे नहीं
रोते रोते कह रहा था कि हमने सब कुछ भुला दिया
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