Friday, June 27, 2008

22nd may opening poem

आज चाँदनी भी मेरी तरह जाग रही हैं
पलकों पर सितारों को लिए रात खड़ी हैं
ये बात ज़रूरी हैं की वो सूरत के भले
दिल के बुरे न हो
चाँदनी के चाहने वाले तारो से बड़े न हो
गजलो की जुल्फों ने बस उसी से संवरना सीखा
हमने जिन राहो पर देखा सिर्फ़ उसी को देखा
तारो को जिंदगी समझ बैठा था अनजाने मे
इतनी समझ कहाँ थी तेरे दीवाने मे
जाने किस बात की उनको शिकायत मुझसे
नाम तक नही बताया मैंने चाँदनी को अपने किसी फ़साने मे
आज से हमने भी पीना छोड़ दिया
जब देखा नशा ज्यादा हैं तेरी आंखों के पैमाने मे
कोई तो आवाज़ देगा हमे भी वीराने मे

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