Friday, June 27, 2008

21st may closing poem

जब तनहाई होगी बुझ जायेंगे जब चिराग उम्मीदों के
उससे मुलाक़ात तो होगी पर सिर्फ़ तेरी याद होगी
वक्त रुखसत का जब तेरे होगा
तेरे जाने से पहले मेरा जनाजा सजा होगा
अजीब लगता हैं जब मैं जाने कि बात करता हूँ
पर क्या करू तेरी यादों से ही मेरा दिल चलता हैं
अश्क तेरे अपने अश्को मे छुपा लू
तु उदास हो जाए कभी तो तेरी उदासी को अपना दोस्त बना लू
उदासी से उसकी सारी उदासी चुरा लू
मैं तेरे आंसुओ को अपनी पलकों मे बसा लू
तु बस अपनी पलके झपकाए कभी
और पलके झपकते ही सारी दुनिया को तेरे सामने झुका दू

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