सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
सोचा तुम्हे पूजा तुम्हे चाह तुम्हे
मेरी खता मेरी वफ़ा तेरे सिवा कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने आंसू बिछाए रात भर
भेजा वाही कागज़ पर उसमे लिखा कुछ भी नहीं
हर शाम की दहलीज़ पर बैठा रहा वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत पर मुह से कहा कुछ भी नहीं
अहसास की तेरे खुशबु यहाँ आवाज़ जुगनुओ की
अब मेरे घर मे इसके सिवा कुछ भी नहीं
दो चार साल की बात हैं दिल खाक मे मिल ही जायेगा
जब आग पर कागज़ रखा बाकि बचा कुछ भी नहीं
सोचा दोस्तों को खुश कर दे उन्हें अपनी यादो मे शामिल कर दे
पर सच मेरी यादो मे तेरे सिवा कुछ भी नहीं
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