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Sunday, December 14, 2008
12TH DECEMBER OPENING POEM
मेरी यादो ने तब उसे भी रुलाया होगा
बात बेबात जब आँख उसकी छलकी होगी
तब चेहरा उसने अपना बाजुओ में छुपाया होगा
सोचा होगा दिन में कई बार मुझको
पर जान कर मुझको बताया होगा
कही जो शहर भर में जिक्र मेरा सुना होगा
अपनी मम्मी को उसने ज़रुर बताया होगा
रात को शायद नींद न आई होगी तुझे
तुने फिर तकिये को अपने सीने से लगाया होगा
मेरी यादो से होकर निढाल मेर यादों से
मेरी तस्वीर पे अपना सर जरुर टिकाया होगा
पूछा होगा जब किसी ने तेरे हालत का सबब
तब बातो बातो में तुने सबसे छूपाया होगा
Thursday, November 27, 2008
Sunday, November 23, 2008
21st november opening poem
जो मिला उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
वो तेरे नसीब की बारिश किसी और छत पे बरस गयी
ये दील बेकरार हैं उसे भूल जा
मैं तो गुम था तेरे ही ध्यान में
तेरी आस तेरे गुमान में
सजा भी लगी ये चलती हवा तेरे बिन
मेरी चिंता न कर मुझे भूल जा
कहीं चाक जान कर रफू नहीं
दील के दरद को जो सिल दे
तेरे सिवा मुझे कुछ कबूल नहीं
जो हुआ उसे भूल जा
20th nov opening poem
वो नहीं तो उसकी आस रहे
जैसे झरने को पानी कि प्यास रहे
जब भी कसने लगा उतार दिया
रिश्तो में कुछ फासला ये भी साथ रहे
बेहोश हो गए कुछ सित्रई भी
(वो हैं ही इतनी खुबसूरत _
जो साड़ी उम्र उसके साथ रहे
18th november opening poem
पर मेरी बाते क्यों तेरे छोटे से दील में दबी रहती हैं
.........
17th november opening poem
मीले भी भागा दौडी में
और वो भी नसीब से
काजल अपनी आंखों में लगाती हैं
न जाने रोज़ कीतनो को दीवाना बनाती हैं
.................
Tuesday, October 28, 2008
28th october closing poem
मेरी एक रौशनी से मुलाक़ात होगी
दिए तो हम सब जलाएंगे
मगर दियो के बीच आज शायद ये बात होगी
वो कैसे हमसे ज्यादा रौशनी देती हैं
हम पुरे साल इस दिन का इंतज़ार करते हैं
और वो खुबसूरत पुरे साल न जाने किसके दिल में रहती हैं
जानते नही वो दिए बेचारे
वो खुबसूरत मेरे दिल में रहती हैं
जहा बहुत अँधेरा रहता हैं
बहुत सारे लोगो की जगह तो नही
बस इस छोटे से कमरे में
किसी फुलछड़ी का एक बल्ब जला रहता हैं
पर उसकी मोहब्बत के बाद
इस अँधेरी कोठडी में बड़ी रौशनी रहती हैं
और वो खुबसूरत हर दिए से बस इतना कहती हैं
प्यार करो इतना करो कि कभी कम न हो
रौशनी रहे न रहे सदा बस
मुझे सुनाने वाले इस उदयपुर की आँख कभी नम न हो
वो हर दिए से कहती हैं
कि क्यों चंद पैसो के लालच में हम अपना ईमान बेचते हैं
क्यों मोहब्बत के नाम पर अपनी रोटिया सकते हैं
और किसी का हाथ थामकर क्यों दूर जाना चाहते हैं
और क्यों अंधेरे का बहाना बनाकर
रौशनी के मोड़ से मुड जाते हैं
28th october opening poem ------------- HAPPY DEEPAWALI
बहुत अजीज हैं वो मगर हो गया वो पराया
उतर भी आओ कभी आसमा के रास्ते से
तुम्हे खुदा ने हमारे लिए बनाया
महक रही हैं ज़मी चांदनी के फूलो से
खुदा किसी की मोहब्बत पर मुस्कुराया
पर अब किसी की मोहब्बत का ऐतबार नही
ज़माने ने हमे बहुत सताया
तमाम उम्र मेरा दम भी उसी धुप में हारा
वो इक चिराग था जिसे मैंने बुझाया
बहुत मिन्नतों के बाद मिलने आया तेरा साया
मैंने लाख पूछा पर तेरा पता ना बताया
27th october closing poem
वो उसकी आंखों मे छलकता प्यार भी
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी कभी इनकार भी
मुझे मिला वक्त तो तेरी जुल्फे सुलझा दूंगा
अभी तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ
एक दिन वक्त को उलझा दूंगा
दिल ये अब कुछ मानता नही उदयपुर
तेरे सिवा अब ये कुछ जानता नही
पहले मेरे पास होती थी हजारो बातें करने को
आजकल तेरे सिवा कोई बात हो
वो दिन कैलंडर मे आता नही
हर पल तुझे याद करना तुझे सोचना
तुझे बेंतेहा प्यार करना और
मेरे उदयपुर तेरे लिए वो सब कुछ करना
जो किसे ने कभी किया ना हो किसी ने कभी सोचा ना हो
27th october opening poem
हम जुल्फों से खेले हैं कभी किसी बात का गम नही देखा
बिता कर रात सर्दी में मोहब्बत करने वालो को
कभी चाँद की गोदी में सर रखते नही देखा
चाँद ख़ुद तेरा दीवाना सा हो गया
शायद इसीलिए कई रातो से हमने चाँद न देखा
तारे सारे ख़ुद को तेरी बिंदी समझते हैं
इसीलिए हमने कभी तुझे बिंदी लगाते देखा नही
और शहर हो गया सारा तेरा दीवाना सा
हमने दीवानों को कभी सोते न देखा
देखा तो बस तुझे देखा
और बस तुझे सोचा
25th october opening poem
जिन्दगी भर तेरी तस्वीर से बातें की
हमने तन्हाई में तन्हाई से बातें की
अपनी सोयी तकदीर से बातें की
(बहुत बातें करते हैं हम रेडियो वाले )
खामोश हम भी रहते हैं कभी कभी
माना नही हम रांझा मगर हमने
हीर की हर बात से बातें की
रंग का रंग ज़माने ने बहुत देखा हैं
हमने तेरी हर बात से बातें की
पता नही किस मुहूर्त में दिन निकलता हैं
पता नही किस मोहरत में शाम होती हैं
जब तेरी याद आए तो न जाने
किस किस से बात होती हैं
हमने उस दिन उस बीती शाम से बातें की
दिल टुटा हो जिसका वो देर में सम्हलता हैं
हमने टूटे दिल वालो से सिर्फ़ तेरी ही बातें की
24th october closing poem
मैंने कहा उस दिन लिखूंगा
जिस दिन शब्द ख़ुद कतार बनकर मेरे पास आयेंगे
खुबसूरत तू सबसे ज्यादा ये
खुबसूरत शब्द को बतलायेंगे
बादल चाँद सितारे ये हो गए सारे पुराने
और गीतों में कहाँ ताकत जो गाये तुझपे तराने
इसीलिए मैं लिखता नही कोई कविता
न ग़ज़ल गुन्गुनानी आती हैं
पता नही उस बहते पानी में किसकी तस्वीर अचानक ही बन जाती हैं
और क्यों वो उड़ते पंछी तेरी बात सुनते सुनते रुक जाते हैं
लौटना होता हैं वक्त पे घर
और ख़ुद वक्त से पहले ठहर जाते हैं
वो कहती मुझ पर कुछ लिखते क्यों नही
कलम बेचारी चलती ही नही
ये कमबख्त आगे बढती ही नही
वजह सिर्फ़ इतनी
इस कलम की नज़र भी तुझसे हटती नही
उंगलिया ये कलम उठाये कैसे
इनकी कपकपाती कशिश
तेरी आंखों की कशिश के आगे बढती ही नही
24th october opening poem
तो मैं तुमसे अगर मैं रूठ
कभी पलकों पर आंसुओ को रुकते देखा
कभी आंसुओ से पलकों को सजते देखा
पर कभी होता हैं ऐसा जैसा कभी
कभी होता वैसा ही जैसा होता ही
मैं सोचता नही अब चाँद
चाँद दूर रहता हैं कुछ कहता नही
नही मैं सोचता परियो की बात
वो चाँद पलोकी मुलाकात
तू सोच में क्यों चली आती हैं
इसीलिए रूठ जात हु मैं किसी से मैं
23rd october opening poem
दीवानों का कहाँ एक जगह रैन बसेरा होता हैं
मन फैले तो चाँद सितारे अपनी बाहों में भर ले
यदि सिमटे तो घर आँगन में भी तेरा मेरा होता हैं
गीली आंखों के पीछे का दुःख देखो तो पता चले
कोहरा क्यों तालाबो पर इतना घना होता हैं
सूरज डूब गया या निकल गया मुझे क्या करना
मेरे शहर में तेरे बिना अँधेरा ही होता हैं
लाख सम्हालो दिल के पागलखाने को
पर दिल जिसका होता हो उसी का होता हैं
दिल और रूह का रिश्ता कहे क्या होता हैं
माँ से लिपट कर कोई बच्चा रोते रोते सोता हैं
Monday, October 27, 2008
21 st october opening poem
ये कहाँ सोचा था कि मुझको ही वो चुरा ले जायेगा
मुझको खुशफहमी में रखने का उसे शौक़ हैं
मुझको क्या पता था वो कमबख्त ख़त लिखेगा नही
बस मेरा दिल रखने को मुझसे पता ले जायेगा
हम दीवानों को कहाँ कुछ चाहिए पर देखना
मुझे वो अपना दिल देगा नही
और मुझे बिन बताये वो मेरा दिल ले जायेगा
दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
(हमेशा आपसे भी दोस्त पूछते होंगे न अरे पता नही कब प्यार करने वाला कोई होगा , कब कोई मिलेगा क्या होगा )
कि दोस्तों मुझसे न पूछो मोहब्बत का पता
मेरी मंजिल तक मुझे ख़ुद रास्ता ले जायेगा
वो तो शायद जी लेगा मेरे बिना
पर मुझसे अब न अकेले जिया जायेगा
20th october opening poem
वो भी आख़िर मिल ही गया
बताओ बताओ अब हम क्या करे
हलकी हलकी बारिश होती रही
सोचा हमने भी की अब फूलो की तरह भीगा करे
आँखें मुंड कर इस गुनगुनी सी ठण्ड में बैठे रहे
और देर तक तुझे सोचा करे
दिल मोहब्बत ये दुनिया साड़ी
दिल के हर झरोखे से बस तुझे
18th october closing poem
कि रोज़ मैं रोना नही चाहता
तू मुझ से दूर रहकर भी मेरी रूह में रहे
मैं सच मच तुझे खोना नही चाहता
तुझसे जुदा होकर मैं जिंदा रहू कभी
अपने ख्वाबो में भी इक पल मैं ऐसी नींद सोना नही चाहता
मेरी आंखों की नमी कभी तेरी पलकों को छुए
मैं गुनेहगार कभी ऐसा होना नही चाहता
तू चांदनी हैं मेरी काली रातो की
(क्या हैं तू)
तू चांदनी हैं मेरी काली रातो की
तुझे तो मैं धुप मैं भी खोना नही चाहता
मौसम चाहे कोई सा भी रहे
मौसम चाहे कोई सा दिन कोई सा भी हो
मैं तेरी yaado से अब दूर होना नही चाहता
18 th october opening poem
जिधर देखू उधर बस तू ही तू क्यों हैं
तेरी यादो से जुड़ी हैं मेरी तकदीर लेकिन
तुझे न पाकर मेरी तकदीर भला रूठी क्यों हैं
मुझको हैं ख़बर कि आसां नही तुझे हासिल करना
फ़िर भी कमबख्त ये इंतज़ार ये बेरुखी क्यों हैं
बरसो गुज़र गए मेरे इंतज़ार में लेकिन
मेरी इन बाहों को आज भी तेरा इंतज़ार क्यों हैं
तेरी चाहत की कसम खून के आंसू रोया हूँ
अब कुछ बाकी नही फ़िर जान जान करता हूँ
जान जान कर के क्यों न मैं क्यों कई रातो से हुआ
ख़त्म हुआ मेरा ये अफसाना
एक बात बता दू लेकिन
अंजाम न मुझे मालूम
फ़िर ये मोहब्बत क्यों हैं
17th october closing poem
जिसको दुनिया की नज़र से बचा के रखा
जिसको एक उम्र अपने सीने से लगा के रखा
बात कभी हो ना पायी उससे
चलिए रेलगाडी के एक सफर में ही सही उसको अपनी नज़र के सामने रखा
.......................
.....................
16th october closing poem
एक बादल से हमने बड़ी आस लगा रखी हैं
खामोशी खामोश हैं
सन्नाटे चुपचाप हैं
तेरे जाने से ये आलम सारे अपने आप हैं
यूँ तो लगती हैं हर तरफ़ नमी नमी सी
तेरे जाने के बाद कोई कमी कमी सी
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
(कुछ सवाल होते हैं जिनके जवाब नही होते )
फ़िर क्यों न जाने हम इतना तरसे
इक बदल का टुकडा
ये इक बदल का टुकडा
(आप जानते हैं न बादल के टुकड़े जब इकठ्ठे हो जाते हैं साथ साथ हो जाते हैं तो कैसा लगता हैं )
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे
ढूंढा देखा तो जाना
ये तमाम शहर हैं निगाहों से प्यासा
ये इक बादल का टुकडा अब कहाँ कहाँ बरसे
16th october opening poem
शायद किसी ने सोचा न जैसा
मुझे सन्नाटे बोलते नज़र आते
(कई दिन से ऐसा होता हैं )
कि मुझे सन्नाटे बोलते नज़र आते
और कभी ये शोर भी चुप हो जाते
मैं तो बालकनी पर उस चाँद को देखने खड़ा होता
और न जाने क्यों मोहल्ले भर में किस्सा हो जाता
मैं तो ढलते सूरज से बात करने झील किनारे जाता
और शाम का मंज़र न जाने क्यों इतना हसीं हो जाता
शायद तू उस मंज़र की याद में बसी रहती हैं
तभी तो वो झील भी आजकल चुप चुप रहती हैं
बोलती वो तभी जब झरने से हैं मिलती
अब समझा क्यों मैं उस झरने की हँसी में तेरी आवाज़ हैं कितनी मिलती
ऐसे ही तू जाने अनजाने सोच में आना
ताकि मुझे मिले एक नई कविता लिखने का
एक और नया बहाना
15 th ocotober closing poem
(आजकल अपनी हर बात तुझको सुनाने के लिए ही होती हैं )
तू मगर बेताब उठ कर जाने के लिए
इल्तजा हैं ये मेरी थोडी तो मेर क़द्र कर
कहते हैं लोग अब मैं भी बड़ा कीमती हूँ ज़माने के लिए
बारिश में बीमार होते हुए भी मैं भीगता रहा
तू बता और मैं क्या करू तुझको लुभाने के लिए
मेरे सब अहसास तेरे लिए
तू इसको ज़रा महसूस तो कर
प्यार कर सकता नही मैं यूँ जताने के लिए
लिखना विखना न मुझे पहले आता था
न मुझे अब आता हैं
बस शब्दों को जोड़ता रहता हूँ
तुझे सुनाने सुनाने के लिए
15th october opening poem
तेरा पता भी सिर्फ़ तुझको पता
ढूंढे हम तुझे कहाँ कहाँ
..................................
14th october closing poem
मगर घर के कुछ कोने कभी न बदले
आज सुबह मैंने मेरी अलमारी जब खोली
तेरे ख़त तेरे खातो की वो खुशबु मुझसे आकर बोली
अब याद नही आती न
पहले तो बड़ा कहते थे
मेरे हमजोली ओ मेरे हमजोली
मैं बस मुस्कुरा गया कुछ जवाब न दे पाया
ख़ुद से तो रोज़ करता हूँ बातें
पर उस बंद ख़त से कुछ न कह पाया
सबसे कहता हूँ तू सपनो में आकर मिलता हैं
पर सच अपनी किस्मत में तो सपने भी किस्मत जैसे
कभी मिलते कभी नाराज़ हो जाते
जब तकदीर में कुछ पाना होता हैं
ठीक उसी पल एक रात का आना होता हैं
रात सुबह में फ़िर बदल जाती
पर तेरी यादो को मेरे खातो में कैद होकर
मेरी बंद अलमारी से हर पल आना होता हैं
14 th october opening poem
हम अजनबी ही सही हमसे भी थोडी दोस्ती रखना
मिले दिल हमसे तो ठीक
नही तो बस अपनी आँखें हमसे भी मिलाये रखना
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
(ये कहू उससे ? उसे क्या लगेगा ? वो क्या सोचेगी )
कभी बोलने में न हमसे कुछ कमी रखना
मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
(ऐसा कहते हैं कि वो मेरा दोस्त हैं वो मेरा दोस्त हैं हाथ मिलाने वाला हर शक्स दोस्त नही होता )
कि मिला के हाथ जो दिल कभी न मिले तुम्हारे किसी से
बहुत ज़रूरी हैं जिंदगी में थोड़े फासले रखना
इस दीवाने की इस बात पर ज़रा गौर करना
तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे यारो से ऐसे शायरों से
शायरी को दूर रखना
कि तुम्हारी बात का जो मतलब ही बदल डाले
तुम ऐसे शायरों से शायरी को दूर रखना
नज़र से जब तुम्हे गिरा दे ये दुनिया वाले
इक दिल हैं इंतज़ार में तेरे
बस मेरी इस आखिरी बात पर यकीं रखना
नज़र में प्यार तो लहजे में सादगी रखना
चलो हम रेडियो वाले थोड़े अजनबी ही सही
थोडी सी दोस्ती तो हमसे भी रखना
13th october closing poem
हमने कुछ दुःख बांटा और थोड़ा सन्नाटा बांटा
baant chunt कर रोटी जिसने हमे खाना सिखलाया
माँ वो किसके हिस्से आई जब हमने घर का दरवाज़ा बांटा
दिल बस एक ही था मेरे पास
फ़िर क्यों भला मैंने तेरे लिए
अपने घर वालो का प्यार बांटा
जब भारत एक ही हैं भला
तो फ़िर क्यों नक्शे में हमने उसको काटा
क्यों अलग अलग नाम देकर उस भारत को कई टुकडो में काटा
सपने सजाकर मोहब्बत डोली में आती हैं
फ़िर क्यों कभी किसी एक लड़की ने घर का चूल्हा बांटा
मैंने अहसासों के कागज़ लिखकर जिसके नाम कर दिए सारे
फ़िर क्यों उसने हिस्सा हिस्सा पुर्जा पुर्जा मेरे बांटा
मेरे दिल पर छाले हैं तेरी मोहब्बत के लेकिन
देखा हैं मैंने भी एक दिन तेरे पाँव में कोई काँटा
सिर्फ़ ये बता खुशिया तो तू सबके साथ बाँट आया
गम क्यों न तुने मेरे साथ बांटा
13th october opening poem
इसीलिए हमने ग़ज़ल कोई कभी गई नही
सोने की बहुत सी वजह थी मेरे पास
(थक जाते हैं न काम करते करते तो बहुत सारी वजह होती हैं )
सोने की बहुत सी वजह थी मेरे पास
पर पता नही क्यों कल रात नींद मुझे आई नही
निभ गई बस जब तलक निभ गई
(ऐसा आपके साथ भी होता होगा न कि किसी को जो कह दिया वो कह दिया )
निभ गई जब तलक बस निभ गई
इस दीवाने ने किसी के साथ पुरी जिंदगी निभाने की कसम खायी नही
जब मिले वो तो यूँ मिले कि बस वो ही वो हो हर तरफ़
हर जगह हमने मोहब्बत को ढूंढने की कोई कसम कभी खायी नही
बेबसी इंतज़ार और तेरा प्यार हर वक्त
शायद चौबीस घंटो में इसीलिए तेरी याद आई नही
बस सुन लो मेरे दिल की वो ख़बर ए उदयपुर
ये दिल की ख़बर अब किसी अखबार में आई नही
हमने उसे अपना दिल देने का वादा किया
और वो kambakht पिछले कई दिनों से नज़र हमे आई नही
हर वादे पर हम अपनी जान भी दे दे उसे
हर वादे पर वो निसार
मगर वो हमसे मिलने आई नही
11th october closing poem
कोई नाम हम तुम्हे देते
एक नाम तुम हमे दे देती
इतने खेल खेल लेती हो
खिलती हो तो खुशबु दे देती हो
कभी चुप चुप
कभी आंखों से सब कुछ कह देती हो
तुमसे कुछ पूछे तो पूछे कैसे
कैसे कहे कहो तो यारा
ये जुबां तुझे देख चिपक सी जाती हैं
ऐसा क्यों होता हैं यारा
तुझे शायद जब मैं जानता भी नही था
तभी से तू लगता हैं मुझे बहुत प्यारा
(ऐसा सिर्फ़ प्यार में होता हैं )
देखा तुझे जबसे
बस तबसे जीने की वजह मिल गई
तेरे साथ जिंदगी खुबसूरत होगी
ये वजह मिल गई
सभी कायदे और किताबे
अब छोड़ दिए पढने मैंने
बस तेरे अहसास के साथ
एक अहसास सी जिंदगी मिल गई
11th october opening poem
कोहरा था कही पे पर धीरे धीरे वो कोहरा अब हटने लगा
इंतज़ार था ये कई सदियों का
सदियों के बाद अब शायद मुझे भी प्यार होने लगा
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
(बहुत नींद आती थी )
क्यों मैं पहले सब कुछ भूल सो जाता था
जाने अनजाने बस अपने ही खयालो में खो जाता था
हुआ ये अचानक किसी का ऐसा जादू
कि उस जादू ने सब बदल सा डाला
पहले ख्यालो में भी अकेला रहता था
और अब अकेलेपन में भी अपना बना डाला
कशिश उसकी मोहब्बत की लगती हैं
खुबसूरत होती हैं कई लड़किया
पर आंखों में सूरत किसी की न जचती हैं
शायद वो काला जादू जानती हैं
(उसकी आंखों से लगता हैं ऐसा )
कि शायद वो काला जादू जानती हैं
तभी काले रंग में कमाल लगती हैं
तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
(sun rahe hain na udaypur )
कि तुमको दिखे तो कहना ज़रूर उससे
कि उसके होने से ही वजह मुझे मेरे जीने की नज़र आती हैं
Saturday, October 18, 2008
10th october closing poem
तभी तो लोग हैं जो मुझे देखते हैं आजकल
वरना कौन देखता था मुझे अंधेरे में
मुझे बारिश में अब भीगने की आदत नही रही
पर जब तू अपनी जुल्फे सुलझाती हैं
घंटो भीगने का मन करता हैं
कभी बादल को पैदल चलते देखा नही
मगर तू चले जब नंगे पाँव
तो वो भी पैदल चलने लगते हैं
एक बार तू उन्हें पलट कर देख ले
ऐसी गुजारिश वो करते हैं
कभी सूरज को दिन में ढलते देखा नही
क्यूंकि वो बस रात में रोती हैं
और कभी रात को सोते देखा नही
क्यूंकि वो रात में ही कहीं खोती हैं
कभी तितलिया एक जगह नही रहती टिककर
कभी तितलियों को एक जगह पर न टिककर बैठे देखा
ये तितलिया बड़ी कमबख्त होती हैं
रंग होते जितने उनके परो में
ये सपने उतने दिखाती हैं
सपने उतने दिखाती हैं और
और हर सपने में हर बात में
तू आजकल क्यों चली आती हैं
दूर की चीजे भी साफ़ नज़र आती है
और आजकल पास की चीजे भी धुंधली नज़र आती हैं
10th october opening poem
जो पाया न था वो सब दिया तेरे प्यार ने
रोज़ बदलो में धुंधला सा एक चेहरा नज़र आता हैं
इस कदर प्यार सिखाया तेरे प्यार ने
माचिस जलाई रात अंधेरे में तेरा घर ढूंढने को
हाथ पे ये दाग लगाया तेरे प्यार ने सपने
तेरे सिमटे न मेरी आंखों में
न जाने कितने शहर फिराया तेरे प्यार ने
ना जाम याद हैं न अंजाम
डांडिया खेलते खेलते ये क्या बताया तेरे प्यार ने
दीवाने को न कपडे पहनने का ढंग था न आती थी जीने की अदा
(अपनी बात हो रही हैं उदयपुर )
कि दीवाने को न कपडे पहनने का ढंग था न आती थी जीने की अदा
बस उसे साँस लेना और जीना सिखाया तेरे प्यार ने
Tuesday, October 14, 2008
9th october closing poem
कुछ हम भूल गए शायद
मगर फिर भी उन बीती यादो को
याद करना सुहाना लगता हैं
मिले थे कभी जिन गलियों में हम
उन राहो पर जाना मुश्किल बहुत मुश्किल लगता हैं
फ़िर भी न जाने क्यों उन राहो को पीछे से
बार बार पलट कर देखना अच्छा लगता हैं
तुम शायद खुश अपनी दुनिया में
मैं अपने काम में खुश रहने की कोशिश करता हूँ
ख़त वत तो लिखना मुझे आता नही
इसीलिए अपने मोबाइल पर messege लिखता हूँ
आलम तो ये हैं नींद को भी मैं अब रिश्वत देता हूँ
कि साथ तेरे उन सपनो में महीने में कम से कम एक बार तो रह ले
9th october opening poem
हम तुझे खोकर भी जी लेंगे
बहुत बहाए हैं हमने आंसू
तेरे गम में भी जी लेंगे
तनहा थे हम पहले भी
हम अब भी तनहा हैं
हो सके तो याद न करना हमे
हम तेरी यादो के सहारे भी जी लेंगे
तू हमसफ़र नही तो क्या
(कभी कभी मोहब्बत मिल नही पाती )
कितू हमसफ़र नही तो क्या
तेरी खुबसूरत बातें ही सही
उन्हें अपना हमसफ़र बना कर बस जी लेंगे
तू सपना ही सही
(नही उसका नाम सपना वपना नही हैं )
कि तू एक सपना ही सही
जो एक दिन ज़रूर पुरा होगा
इस इरादे को तेरा समझ कर
तेरे इस इरादे के संग बस हम जी लेंगे
गलती मेरी बस इतनी कि चाहा हैं तुझे
और जब तक जीते रहेंगे
ताउम्र ये गलती करते रहेंगे
रहेंगे तो तेरे साथ
वरना जैसे तैसे बस जी लेंगे
8th october closing poem
और तुझे बस अपनी साँस रोक कर एक तक देखते जाना
तेरी आवाज़ के सेहर से कभी न निकल पाना
और तू जब मुझसे बात करे तो
तुझे बस सुनते चले जाना
बहुत चाहा इन गुज़रे हुए लम्हों को न सोचना
न तेरी यादो में रहकर तेरी हर बात को महसूस करना
(मगर सारी बातें कहाँ वैसी होती हैं जैसा हम सोचते हैं zindagi vahi करती हैं vahi kahti हैं जो हम नही सोचते )
भुला du सारी yaado को जो दिल dukhaati हैं
(कई बार सोचा की क्या हैं यार रोज़ रोज़ की वही टेंशन वही झिकझिक छोडो यार )
भुला दू सारी यादो को जो दिल दुखाती हैं
पर क्या करू यार वो दिल दुखाये कितना भी
याद बहुत आती हैं
डरता नही मैं दिन से पर ये रात मुझे बहुत डराती हैं
ख्वाबो ने अब मेरी आंखों में आना छोड़ दिया
पर ये नींद मेरी पलकों से निकल कर
कमबख्त मेरी ही चप्पल पहनकर मेरी कालोनी से न जाने कहाँ चली जाती हैं
चाँद देखता हैं टकटकी लगाए खिड़की से
कमबख्त ख़ुद तो तारो से बतियाये और हमे जगाये रखता हैं
8th october opening poem
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
तू मेरे हाथो में लिखा नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
अभी रास्ता भी नही धूल में
अभी फिजा भी नही भूल में
अभी मुझको तुझसे गिला नही
मेरे हमसफ़र अभी सोच ले
मैं जनम जनम से बोला नही
(वैसे मैं बहुत बातें करता हूँ मगर जब तू सामने आती हैं तो कुछ बोला नही जाता )
कि मैं जनम जनम से बोला नही
राज़ दिल का किसी से खोला नही
मैं कभी खुल के हंसा नही
अभी तक कहीं खूबसूरती में फसा नही
न जाने तू कहाँ से पसंद आ गई
चंद मुलाकातों में दिल के इतना पास आ गई
अब आई हैं तो यही रहना
(ये धमकी हैं इस लाइन में )
कि अब आई हैं तो यही रहना
तेरे बिना मुझे कुछ नही कहना
7th october closing poem
कुछ दिनों से ये दिल का धडकना कुछ मंद सा हैं
तू मुझे रुलाकर जब मुझसे लिपटता हैं
(किसी के गले लगकर बहुत सुकून मिलता हैं )
तू मुझे रुलाकर जब मुझ से लिपटता हैं
सच कहू तेरा ये अंदाज़ न जाने क्यों मुझे बहुत पसंद सा हैं
कि शिकायत बादलो से
बादलो ने अब मेरे घर से गुज़रना छोड़ सा दिया
उनका मेरी छत पर टहलना कई दिनों से बंद सा हैं
बंद रखता हूँ मैं भी आजकल अपनी हथेली
जब से किसी ने कहा मेरी किस्मत में तेरा होना थोड़ा कम सा हैं
नज़र में अब किसी से किसी को देखता नही
(मैं अपनी नज़र में अब किसी और को नही देखता )
कि नज़र में अब किसी से ज्यादा मिलाता नही
मेरी नज़र में तू बसी रहती हैं
और तू नज़रे मिलाये किसी से
ये पसंद मुझे कुछ कम सा हैं
तू रहे मेरी और मैं करता जाऊ तुझे बेइंतेहा मोहब्बत
ये मोहब्बत भरा ख्याल मेरी नम आंखों में बस बंद सा हैं
Friday, October 10, 2008
7th october opening poem
कोई दीवार न हो जिसमे रह्बसर की
ऐसे घर की हर दीवार में मैं बस जाऊ
तेरी आरजू का अहसास बनकर
मिलूँगा मैं तुझे तेरी प्यास बनकर
तू गर न मिले तो मैं बिखर जाऊ
तेरे रंग में रंग कर अबके बरस मैं होली मनाऊ
तेरे ही नक्शे पर चलता चला जाऊ
न मोड़ का पता हो न फ़िर मैं कुछ गुनागुनाऊ
(जब किसी से बहोत सारी मोहब्बत हो जाती हैं तब ऐसा होता हैं )
न मोड़ का पता हो न मैं कुछ गुनागुनाऊ
तेरा ही साया जिधर नज़र आए
मैं रुख बस उधर का कर जाऊ
इतना प्यार मैं बस तुझे ही दे पाऊंगा
तुझसे दूर एक पल न जी पाऊंगा
मेरी जुबान से बोलू तेरे दिल की हर बोली
मेरी जिद से न खेलो तुम
ए खुबसूरत अब कोई आँख मिचोली
Thursday, October 9, 2008
6th october closing poem
दिल के किसी कोने में अहसास बनके तो रहता हैं
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
(पूछते हैं कभी ऐसा यार ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ वो कहाँ चला गया मेरे पास friends नही हैं मैं बहुत अकेला हूँ )
कभी तू ख़ुद से पूछ क्या पाया और क्या खोया तुने
या तुझे भी अब मेरे मिलने के बाद कुछ याद नही रहता हैं
जिंदगी के मोड़ पर कुछ नाज़ुक रिश्ते हैं बनते
कुछ सड़क के मोड़ पर हैं बिछडते
कुछ जाने अनजाने साथ हैं चलते
जो जान bujh कर बिछड़ जाते वो रिश्ते बड़े कमज़ोर हैं कहलाते
जान बुझ के जब कोई चला गया आपसे दूर तो
वो रिश्ते बड़े कमज़ोर कहलाते
जो मुश्किल परिस्थितियों में आपके साथ चलते
वही मुझे अपनों से ज्यादा प्यारे नज़र हैं आते
तू न मिल मुझसे मुझे कोई गम नही
बस उदास न रहा कर
न उदास रह कर मुझे उदास किया कर
तेरी हँसी से ही तो मेरी साँसे चलती हैं
तू उदास रह कर क्यों दिल का ये हाल करती हैं
6th ocotober opening poem
बदल ही गया हैं वो बस चाँद मुलाकातों में
हसरत रही उसे देखने की पास आने की
कोई वजह नही नज़र आती मुझे उसके दूर जाने की
कभी मेरी किताब में उल्टे सीधे चित्र बनता था
आज मेरे बनाये चित्रों को देखता तक नही
कभी मेरे आने पर बारिश में भीगने जाने का प्रोग्राम बनाता था
पर अब बारिश आने पर वो मिलता तक नही
कभी घंटो बैठ मुझे चिठ्ठिया लिखता था
ख़त में हर बात होती थी
यहाँ ये हुआ उसने वो कहा पापा ऐसे डांटते हैं तुम कब आओगे
कभी घंटो बैठ मुझे चिठ्ठिया लिखता था
पर अब मेरी लिखी चिठ्ठिया वो कमबख्त खोलता तक नही
पर जानता हूँ करता हैं वो सब जानकर
मिल सकते नही जिंदगी में हमेशा के लिए
बस इसीलिए बदलना चाहता हैं वो ख़ुद को सबके लिए
4th october opening poem
यहाँ रोज़ एक चीज़ टूट जाती हैं
मैं अब भी खिड़की पर हर शाम खड़ा होता हूँ
उम्मीद तेरे आने की फ़िर क्यों रूठ जाती हैं
मैंने अब घर लौटते पंछियों से बात करना छोड़ दिया
फ़िर भी क्यों उनकी खामोशी मेरा ध्यान तोड़ जाती हैं
फूल मेरे आँगन में अब खिलते नही
उनके खिलने की कोई वजह मुझे नज़र नही आती
और वो तितलिया वो अब मेरे मोहल्ले का पता तक भूल गई
इसीलिए शायद उनके पारो में अब तेरी खुशबु नही आती
चलो शायद यही मोहब्बत होती हैं जहा वजह न हो किसी के आने की
फ़िर भी हर बार एक वजह नज़र आती हैं
3rd october closing poem
मेरे दिल की बात छोड़ ये तो तेरी याद से ही धड़कता हैं
कब किसी ने किसी के लिए ये जहाँ छोड़ा हैं
मेरी मिसाल बिल्कुल मत दे
मैंने तो तेरे लिए दुनिया का हर असूल तोडा हैं
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए
(बड़ी बेरुखी से जब कोई चला जाता हैं तो दिल बस यही कहता हैं कि)
चल दिए छोड़ कर ये कहते हुए कि कायनात में कब कहाँ किसी की कमी खलती हैं
मैं दीवाना सोचता रह गया कि
कैसे कही उससे
कि उसके होने से ही मेरी साँसे चलती हैं
Monday, October 6, 2008
3rd october opening poem
ख्वाबो में भी फ़िर उनसे मुलाकात न होती
कुछ लम्हे ही सही हमे करार आता हैं
तेरा वो छूना मुझे रह रह कर याद आता हैं
गौर फरमाइयेगा उदयपुर
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती
(जो हम सोचते हैं life में बस वही नही होता तो बार-२ ये ख्याल आता हैं कि)
ए काश ये जिंदगी मेरे बस में होती
तो ख्वाबो में ही सही हमारी बहोत बात होती
हर लम्हा तुझे देखता फ़िर सोने की जगह मेरी जागने की ख्वाहिश होती
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
(अब आप smile करना बंद करे तो हम कुछ कहे )
एक दिन अपना बना लूँगा तुझे
फ़िर उस अहसास से जुदा न कर पायेगा कोई मुझे
हर हकीक़त में या पर हकीक़त में
तेरे पास होने की एक आस हैं
सच में न सही तू उस प्यारे से ख्वाब में ही सही पर
मेरी बांहों में मेरी आँखों के एकदम पास हैं
2nd october closing poem
मेरे दिल मे जो कैद रहता हैं
बस उसी की बात करे
शब्द जो भी इस जुबां पर आता हैं
न जाने क्यों तेरा ही नाम फरमाता हैं
मेरी आवाज़ जो तेरे कानो मे खनकती हैं
ये सीधे मेरे दिल से खनकती हैं
मैं पूछता हूँ ख़ुद से की क्यों ये जुबां
खुदा से पहले तेरा नाम लेती हैं
घर मे दस्तक हवा भी दे तो
तेरा अहसास मेरे पास होने का ये कहती हैं
नही रोक सकता मैं इस जुबां को लेने से तेरा नाम
क्यूंकि तेरे नाम से ही तो मेरी सुबह होती हैं
मेरी शाम मेरी रात होती हैं
2nd october opening poem
कि रोज़ मैं रोना नही
तू मुझसे दूर रहकर भी मेरी रूह मे
मैं सचमुच तुझे इक पल को खोना नही चाहता
तुझसे जुदा रहकर जिंदा रहू कभी
ख्वाबो मे एक पल भी नींद ऐसी मैं सोना नही चाहता
मेरी आंखों की नमी कभी तेरी पलकों को छुए
मैं गुनेहगार कभी ऐसा होना नही चाहता
तू चाँदनी हैं
(उसका नाम चाँदनी नही हैं )
कि तू चाँदनी हैं मेरी काली रातो की
तुझे तो मैं धुप मे भी खोना नही चाहता
मौसम चाहे कोई सा भी रहे दिल मे
मैं तेरी यादो के मौसम मे तुझसे दूर होना नही चाहता
1st october closing poem
इस दिल पे रहेगा बस नाम तुम्हारा
इस बात पर यकीं रखना तुम
मैं हु तेरे साथ हूँ मैं तेरी हर बात का हमराज़
दूर होकर भी एक दूजे से कभी दूर नही हम
वो बदल दूर उड़ता हैं मगर आंखों से कभी दूर नही होता
तेरी उदासी बस जब हो मेरा दम उस पल निकल जाए
गुज़रता हर लम्हा हर लम्हा बस तेरी याद दिलाये
साँसों की ये डोर तेरी साँसों के संग जोड़ जाए
मेरे हमदम तेरा प्यार पुरी ज़िन्दगी इस दीवाने को मिले
और ये दीवाना बिना थके बस ऐसे ही बोलता जाए
खुदा क बाद करू मैं दिल की हर बात अगर किसी से
तो वो सिर्फ़ तू
तू मेरी ज़िन्दगी मेरी बंदगी बन जाए
वक्त की वो गर्मी झुलसाने लगे अगर तेरे इरादे
तो बिना सोचे तू सिर्फ़ मेरा नम्बर घुमाये
वक्त की थोडी कमी रहती हैं आजकल
पर जब जब जिस पल तू मुझे याद करना चाहे
बस उसी पल ये अंकित तेरी आंखों के सामने
तुझसे बात करने को किसी भी कोने से चला आए
1st october opening poem
(पहले वो बहुत पूछती थी अब मैं बहुत पूछ्ता हूँ )
मैं बंद कर दू सवाल करना गर तू जवाब देना शुरू कर दे
सब चलते मोहब्बत के सफर मे
तू संग चल तो अपना हर सफर मैं तुझ पर नज़र कर दू
हम्म मैं सवाल करना बंद कर दू
चलन चाहते मेरे संग तो आकाश बनके चलना
मैं धरती बनके तुम को ही साथ लूँगा
जानता हूँ ये आकाश धरती मिलते नही
मगर मैं तुमको छू ही लूँगा
दूर रहकर भी होता हैं दिलो मे प्यार का सहारा
मैं लौटना चाहू तो भी लौटा न सकूँगा
पर ये न समझना कि मुझे मोहब्बत नही
बस एक इसी रिश्ते पर मैं कोई बात बर्दाश्त नही करूँगा
करूँगा पुरी दुनिया से सिर्फ़ तेरी ही बातें
और सच अपनी इस बात से कभी पीछे न हटूंगा
मैं जानता हूँ तेरी तस्वीर अपने होठ हिलती नही
पर मैं तेरी तस्वीर को टकटकी लगाये देखूंगा
30th september closing poem - on jodhpur stampede
जो भरा नही भावो से बहती
जिसमे रसधार नही
वो दिल नही पत्थर हैं
जिसमे स्वदेश का प्यार नही
जयभारत कहने से देश बड़ा बनेगा नही
सोच बदलो उन आतंकवादियों की
सच ये पैसा सब कुछ पर भगवान् नही
जान से ज्यादा किसी की कुछ भी नही
और उन लोगो को किसी की जान का कुछ भी ख्याल नही
Saturday, October 4, 2008
30th september opening poem
तुम तो हमे भूल ही जाओगे
हम तो अब सिर्फ़ तेरे नाम से जिंदा हैं
तुम चली गई तो कैसे जी पायेंगे
तुम खुशबु सी कहीं न कहीं बिखर ही जोगी
हम भला कब तक तुझे अपने दिल मे छुपायेंगे
मेरी ख्वाहिश इतनी किहर रस्म तुझसे जुड़ी मैं अच्छे ने निभाऊ
पर क्या तुम प्यार की एक छोटी सी रस्म निभा पाओगी
अब न शिकायत करेगा ये दिल तुमसे
मिलेगा रोज़ हमसे पर हम अब कुछ न कह पायेंगे
(दिल मुझे रोज़ मिलेगा पर मैं उसे कुछ कह नही पाउँगा तेरे जाने के बाद )
पूछेगा गर खुदा मुझसे
(बहोत मानाने मे लगा हैं god मुझे )
पूछेगा खुदा मुझसे
क्या बनकर धड्कू मैं तेरे सीने मे हर पल
हर धड़कन मे बस हम तेरा ही नाम चाहेंगे
यादो से न कभी मेरी दूर जाना
तू हमेशा खुश रहना
यही दुआ बस उस खुदा से हम हर पल चाहेंगे
29th september closing poem
और उसको भी अपने दिल का हाल बताया न जा सका
ज़ख्मो से चूर चूर था ये दिल मेरा
पर कोई ज़ख्म उसको दिखाया न जा सका
जब तेरी याद आई तो लाख की मैंने कोशिश की तुझे याद न करू
(क्यों याद करू मैं उसे क्यों याद करू)
जब तेरी याद आई तो लाख की मैंने कोशिश की तुझे याद न करू
अपने मोबाइल फ़ोन से तुझे कोई कॉल न करू
न भेजी मैं कोई ख़त न लिखू कोई messege
पर दिल को उस पल समझाया न जा सका
आंखों मे आंसुओ को कई देर तक तो रोका
पर ज्यादा देर तक मैं थाम न सका
कुछ लोग जिंदगी मे ऐसे आए
कि एक पल के लिए भी उन्हें भुलाया न जा सका
बस इस ख्याल से कि उनको दुःख न हो
हमसे हाल ऐ गम सुनाया न जा सका
मैं ज़रूर मुस्कुरा रहा था उनके सामने
पर चेहरेका बदलता रंग भी उनसे छुपाया न जा सका
(यही होता हैं प्यार मे , आप लाख छुपाना चाहे अपनी परेशानिया सामने वाले को पता लग ही जाता हैं )
29th september opening poem
मुस्कुराके मुझे कभी गले लगना
पल को थाम कर एक पल मे वापस चले जाना
और उस एक पल मे ही मुझे अपना दीवाना बनाना
साँसों को रोक कर तेरा बस पल दो पल के लिए चुप हो जाना
और सच उन दो पलो मे मुझसे मेरे दिल का कोई भी हाल कभी बाया ना कर पाना
सालो बाद मिलना मानो मेरे सारे ख्वाब हकीक़त कर जाना
दूरियों को नजदीकिया बताना
फ़िर भी पास ना आना
उस एक पल मे मुझे न जाने क्या मिल जाना
जैसे किसी बंद किताब के पन्नो का ऐसे ही उलटते जाना
बंधन ये प्यार का
कभी अनजाना कभी जाना पहचाना
कभी घर मे अपनो को भूल जन
कभी अपनो के बीच तुझे देखते जाना
तेरी यादो को हर पल गले से लगाना
और जब तनहा हो तब तुझसे बतियाते जाना
(ये प्यार हैं उदयपुर ये मोहब्बत हैं जो आपको एक पल के लिए भी कभी अकेला नही छोड़ती और आप अकेला होना भी चाहे तो भी आपको अकेला नही छोड़ती )
27th september closing poem
देखा सुना कुछ भी नही
माँगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नही
सोचा तुझे पूजा तुझे चाहा तुझे
मेरी खता शायद मेरी वफ़ा
जो तेरे लिए कुछ भी नही
जिस पर हमारी आँख ने आंसू बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ तुम्हे पर उसमे लिखा कुछ भी नही
एक शाम की दहलीज़ पर बैठा रहा वो देर तक
आंखों से की सारी बातें
पर मुह से कहा कुछ भी नही
अहसास की तेरे खुशबु आए
आवाज़ जुगनुओ को दी
पर तेरे घर मे तन्हाई के सिवा कुछ भी नही
दो चार साल की बात हैं
दिल ख़ाक मे मिल ही जायेगा
जब आग पर तुमने रख दिया उस ख़त को
जिसमे हमने लिखा कुछ भी नही
27th september opening poem
जो पसंद आएगा वही फ़ोन नही लगायेगा
दिन बीतेगा तेरे इंतज़ार मे
न इस दिल को रात मे करार आएगा
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
(रोज़ दिल हम पर हुक्म चलाताहैं कभी कभी हम दिल पर हुक्म चलते हैं )
सुनो इस दिल का कहा मानों एक काम कर दो
एक बेनाम सी मोहब्बत मेरे नाम कर दो
मेरी किस्मत पर बस इतना अहसान कर दो
किसी दिन अपनी शाम मे हमे शामिल कर लो
या फ़िर मेरी एक सुबह को ही तुम शाम कर दो
मैं जानता हूँ तू हैं खुबसूरत बहुत
पर चाहने वालो का क्यों बुरा हाल करती हैं
मैं तो तेरा चाहने वाला भी नही
फ़िर क्यों आंखों आंखों मे तू इतने सवाल करती हैं
(तो फ़िर मैं कौन )
मैं तो दीवाना तेरी उस तस्वीर का हो गया
दिल मेरा था २५ सालो से अचानक ये तेरा हो गया
Friday, September 26, 2008
26th september closing poem
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन्हें प्यार कर सकता हूँ
वो पूछते हैं कितनी देर तक मैं उन पर कुछ लिख सकता हूँ
वो पूछते हैं कि कितनी देर तक मैं उन्हें सुन सकता हूँ
ये तो अब आप जानते हैं उदयपुर कि आपका और हमारा अब क्या रिश्ता हैं और मैं बस यही कहूँगा कि )
जैसे कोई दुआ दिल में हो
कि जैसे कोई दुआ दिल में हो
जैसे कोई शिकवा न कभी तुमसे हो
जैसे मोहब्बत हो तुम
और तुम्हे देख कर जैसे हम कहीं गुम
वैसा कोई और तुम सा न हो
न हो कोई जिसे देखने का मन होता हो
ख्वाब बहुत से आते हैं
पर ऐसा कोई ख्वाब नही जिसमे तू न होता
मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न ले खुबसूरत
कौन कहता हैं कि कांटो को दिल नही होता
दिल होता हैं कांटो को भी
पर जुबां नही होती सबकी एक जैसी
दुनिया में कोई कितना भी खुबसूरत हो पर तुझ सा न हो
26th september opening poem
तू खुबसूरत इसका तुझे गुमान हैं
होंगे तेरे कई दीवाने पर तेरा ये दीवाना भी कमाल
तुझे लगता ऐसा की दीदार करना तेरा आसान नही
(तुम कैसे आओगे मुझे देखने , मैं तुम्हे मिलूंगी ही नही )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही
मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
(क्या प्रॉब्लम क्या हैं आपका )
तुझे लगता ऐसा की तेरा दीदार करना आसान नही मुझे लगता ये सबसे आसान हैं
मैं कोई बदल नही जिसे देख तू खिड़की बंद कर ले
न मैं कोई चाँद जो रात होने का इंतज़ार करे
मैं तो पागल तेरी पहली मुलाकात के बाद हो गया
तेरा पता नही पर मुझे तुझसे प्यार हो गया
सोचती होगी की जब बंद कर लेती हूँ घर के सब खिड़की दरवाजे
तो दीवाने को हम नज़र कहाँ से आते
मैं हूँ वो आइना तेरे कमरे का
जो छुप छुप के तेरा दीदार करता हैं
तेरी हर हरकत को अपनी आंखों में कैद करता हैं
तेरा पता नही पर सच तुझसे बहुत प्यार करता हैं
25th september closing poem
चूमता हूँ तो मेरे होठ जलते हैं
एक दीवार वो भी शीशे की
कि दो बदन जब पास पास चलते हैं
नींद से मेरा ताल्लुक नही सदियों से
देखो तेरे ये ख्वाब आकर कैसे मेरी छत पे टहलते हैं
मेरे हाथो के निशां मिलेंगे कदमो तले तेरे
सेहरा की कड़ी धुप में जब तेरे पाँव जलते हैं
25th september opening poem
जितनी बार पानी बरसा उतना याद किया
(कल बहुत बारिश हुई न हमारे शहर में )
इक बार कहो तो कि मुझे याद किया
जितनी बार पानी बरसा उतना याद किया
याद तेरी तब आई जब बादलो ने अपनी आँखें सहलाई
या जब किसी ने बड़े प्यार से ली एक अंगडाई
ये तितलिया भी आजकल मेरे साथ वक्त नही बिताती
और न ये अब मुझे जुगनुओ का किस्सा सुनती
लगता उन्हें कि अब मैं दीवाना हो गया हूँ
काम के अलावा किसी और में खो गया हूँ
न अब मेरे दोस्त मुझे अपने घर बुलाते हैं
दीवाना किसी का कहकर चिढाते हैं
कोई परवाह नही मुझे इस ज़माने की
परवाह बस तेरे पास आने की
तितलियों के परो पर तेरी खुशियों के कुछ रंग सजाने की
परवाह उस बरसते बदल को मोहब्बत सिखाने की
Wednesday, September 24, 2008
24th september closing poem
सारी बातें मुझे बिन बोले समझ आती हैं
मैं वैसे ही कहा चुप रहता हूँ
ऐसे ना देखो परेशानियों का ये सबब दे जाती हैं
तुम्हे जिद हैं कि मैं कह दू
मुझे जिद हैं कि तुम कह दो
पर मोहब्बत कहा मोहताज़ हैं लफ्जों की
मोहब्बत तो हमारी धडकनों मे हैं शामिल
मेरी आंखों मे पलता वो हसीं जज्बा
जिसे सवाय मेरे कोई और समझ ना पाया
ना इस मोहब्बत की कोई सूरत हैं
ना कमबख्त इसका हैं कोई पैमाना
बस मोहब्बत का दुश्मन ये सारा ज़माना
मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
(वो ऐसा हैं वो वैसा हैं ऐसा ही हैं वैसा हैं )
कि मैं जानता हूँ अब मेरे बारे मे हर कहीं बात होती हैं
कभी अच्छी तो कभी बुरी होती हैं
जो कहना जिसको कहे
बस तु हमेशा मेरे दिल मे रहे
क्यूंकि बातें हमेशा उनकी होती हैं
जो बातो के होते हैं लायक
बाकि ये शहर बखूबी जानता हैं
मोहब्बत मे कौन लायक और कौन नालायक
24th september opening poem
कभी कुछ कहने को नही होता
कभी ऐसे सवाल करता हैं ये दिल
जिनका कोई जवाब नही होता
चलो आज एक बात दिल पूछता तुम से
हम रूठ जाए तो क्या करोगी
रूठ कर तेरा फ़ोन न उठाये तो क्या करोगी
मैं जब भी करता ये जान कर नही करता
जो दिल हुक्म करता वही मैं हूँ करता
कभी शहर छोड़ जाऊ तेरा तो क्या करोगी
सिर्फ़ एक अहसास सा बन जाऊ मैं तो क्या करोगी
करोगी वही जो इस पल कर रही हो
गुस्से मे कसम से क्या लग रही हो
जब जानती हो ज़रूरी मैं तेरे लिए
तो फ़िर क्यों गुस्सा कर रही हो
ना जाऊँगा तुमसे दूर कभी
वादा ये पक्का करता अभी
Monday, September 22, 2008
23rd september opening poem
कि कभी मैं खुद से खफा हो जाता हूँ
और फ़िर बोलते बोलते चुप हो जाता हूँ
सोचता हूँ कि उस पल मैं किसी को नज़र ना आऊ
और फ़िर खुद से ही लिपट जाऊ
इस ठिठुरे हुए अहसास से कहीं दूर निकल जाऊ
पर कहाँ निकल पाता हूँ
मैं वो बर्फ हु कि
तु जो छू ले अपने होठो से
तो पिघल जाऊ मैं
तेरी चाहत मे कही इतना ना बदल जाऊ मैं
लिखने का सोचु किसी और विषय पर
और कलम से पुरे पन्ने पर तेरा नाम लिख जाऊ मैं
ये जाना पहचाना शहर अब लगता खुद से अनजाना हैं
जानता हूँ तुझे प्यार करता ये सिर्फ़ एक दीवाना हैं
दीवानगी मे कहीं इतना ना खो जाऊ मैं
सोचता हूँ कुछ पल मिले कि तेरे सिवा किसी को ना नज़र
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
(अरे smile करना तो बंद करो )
कि तु कभी ना जाना इस अहसास से दूर
ऐसा ना हो कि कहीं अपनी ही बगल से निकल जाऊ मैं
23rd september opening poem
बाकी पल बस रूठने मनाने का
एक पल दिल के इधर से उधर जाने का
बाकि पल हैं नीर बहाने का
एक पल मे हैं शरारत
एक पल मे होती मोहब्बत
बाकी पल बस मोहब्बत पाने का
एक पल मे दिखता बादल एक खो जाने का
बाकी पल बस उस कोहरे से रोशनी लाने का
एक पल गिरते झरने से तेरी बेपनाह याद चुराने का
बाकी पल अहसास जगाने का
एक पल मे हो जात कोई गैर अपना
बाकी पल गिरो को अपना बनाने का
एक पल मे काजल तेरी आँख मे लगता तो काजल कहलाता
बाकी पल काजल को काजल कहलाने का
22nd september closing poem
कैसे गुज़ारा सोचो तुम
तुम संग सजना प्यार की बाज़ी
मैं क्यों हारा सोचो तुम
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन
(ऐसा होता होगा ना आपके साथ भी , किसी से बेइंतेहा मोहब्बत कर लो और वो मिले ही ना )
देकर अपना खून हैं सींचा
प्यार के गुलशन को लेकिन
सुख गई क्यों बहते बहते
वो प्यार की धारा सोचो तो
मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
(कोई कर ही नही सकता जी जैसी मोहब्बत हम आपको करते हैं )
कि मेरी तरह से क्यों ना आख़िर कोई तुमसे प्यार करे
मेरी जगह पर तुम जो होते बोलो ज़रा क्या करते
बात इतनी सी लेकिन ये कही नही जाती
क्यों ऐसा ज़रा सोचो तो
22nd september opening poem
उनसे मिलने के बाद न जाने मैं क्यों बदल गया
कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा उसकी आंखों मे
फ़िर क्यों हवा का वो झोंका उसका चेहरा बदल गया
जब हम अपने अपने हाल पर जी रहे थे
फ़िर क्या हुआ जो हमसे ज़माना बदल गया
कदमो तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी
उसने छुआ हाथ तो सहारा बदल गया
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर न रही
जाते ही एक शक्स के क्या क्या बदल गया
हैरत हैं सारे लफ्ज़ उसे बस देखते रहे
बातो मे अपनी बात को वो कैसे बदल गया
मेरी आंखों मे जितने आंसू थे वो सब बह गए
वो खुबसूरत बस मुस्कुरा के मेरी दुनिया बदल गया
अब अपनी गली मे अपना ही घर ढूंढ़ता हूँ मैं
वो कौन था जो शहर का नक्शा बदल गया
19th september closing poem
मेरे महबूब की आँखें हैं वो गहरी सी झील
जिसमे खिलते हैं मेरी मोहब्बत के फूल
उसको देखू तो मुझे शायरी करनी आ जाए
और मैं उसके लिए गाऊमोहब्बत गीत
वो मेरा दिल धड़कने की वजह
तुमने शायद मेरे महबूब को देखा नही
मेरे महबूब के झलवो का कोई जवाब नही
धुप सा रंग ख़ुद उसका
ख़ुद उस जैसी हवा नही
उसकी पायजेब मे बरसात का मौसम छनके
(छम छम जब बारिश की बूंदों की आवाज़ आती हैं असल मे वो उसकी पाँव की पायल हैं जो खनकती जाती हैं )
उसकी पायजेब मे बरसात का मौसम छनके
सर पे रेशम का दुपट्टा
न पूछ मेरा दिल कैसे धडके
वो जहा भर की हसीनो से जुदा हैं मेरे दोस्त
मेरे महबूब जैसा कोई कहा ये न पूछ
कुछ उसे फूल कहे पर फूल एक वक्त के बाद मुरझा जाता हैं
वो न चाँद जो कभी कभी आता हैं कभी बादलो मे छुप जाता हैं
वो इस अंकित के दिल का अहसास
जो जाने अनजाने बस इस दिल मे चुपके से समां जाता हैं
19th september opening poem
हौंसला उन्हें देना खुदा मेरे बाद
क्यूंकि वो आजकल लिखने लगी हैं मेरा नाम
तेरे नाम के बाद
कौन घूँघट को उठाएगा उसे चाँद कहकर
कौन करेगा वफ़ा की बातें मेरे बाद
आजकल खाने की थाली भी उससे नाराज़ सी रहती हैं
वो अब खाना भी खाती हैं मेरे खाने के बाद
फ़िर ज़माने मे मोहब्बत की कोई परछाई न होगी
भले ही ये सूरज रोज़ निकलेगा
मगर फ़िर भी प्यार करने वालो की दास्तान न होंगी
ए खुदा उसका बहुत ध्यान रखना मेरे जाने के बाद
रोएगी मोहब्बत भी सिसकिया ले लेकर
पढ़ाएगी बेवफाई वफ़ा का पाठ एक दिन
देखना मेरे जाने के बाद
Wednesday, September 17, 2008
18th september closing poem
कहीं भी रहे तू तुझे भूल ना पाउँगा
मेरे गम का तू दर्द न लेना
तेरे इस दर्द मे भी मैं सुकून पाऊंगा
जा जाके खो जा तू उन हसीं वादियों मे
(कभी लड़ाई होती हैं तो वो कहती होगी न मैं चली जाउंगी,मैं चली जाउंगी ,मैं चली जाउंगी )
कि जा जाके खो जा तू उन हसीं वादियों मे
दीवाना हूँ तेरा तुझे कहीं से भी ढूंढ़ लाऊंगा
तू खुश रहे तो मैं जी पाऊंगा
सच तेरे हर दर्द मे सुकून पाऊंगा
जा चली जा दूर तू इस घने कोहरे से
खुले आसमा मे सारे शहर मे मैं तो तेरा ही गीत गाऊंगा
रिश्ता मुझसे सोच समझ कर रखना
(वो ऐसा हैं वो वैसा हैं उसके लिए लोग ये कहते हैं अच्छा नही हैं बुरा हैं काफी सारे लोग होते हैं जो पंचायती करते हैं )
कि रिश्ता मुझसे सोच समझ कर रखना
थोड़ा सा बदनाम मैं
पर तुझे बदनाम न कर पाऊंगा
कोई पूछे मेरा नाम तो मना कर देना मेरे नाम से
वरना ये दीवाना दीवाना हैं
मोहब्बत का परवाना हैं
मैं अपनी मोहब्बत पर कभी न दाग लगाऊंगा
18th september opening poem
कहाँ से आती हैं
(ये उन सभी के लिए जिन्हें अपनी महबूबा परियो सी नज़र आती हैं )
ना जाने ये परिया कैसी होती हैं
कहाँ से आती हैं
हमे तो परियो के बीच मे भी तू ही याद आती हैं
कहने वाले कहते हैं वो बहुत सुंदर होती हैं
पर तेरी तारीफ़ हम से ज्यादा करी नही जाती हैं
दूर कहीं उन परियो की बस्ती बताते हैं
मगर वो परिया तब आती हैं
जब प्यार करने वाले किसी का दिल दुखाते हैं
होती उनके पास एक जादू की छडी हैं
मगर हम तुझे ही जादू बताते हैं
जादू तेरी उन आंखों का
जादू न कही उन सब बातो का
जादू छुप छुप कर मुझे ढूढने का
की वो जादू ख़ुद तुझे देख कर
कभी कभी हैरान सा होता हैं
चलना होता हैं उसे किसी और
और वो कमबख्त किसी और पे चलता होता हैं
चैन से सोने वाले भी चैन अपना तुझे देख कर खो देते हैं
पता नही परियो का क्या होता हैं
जिनके साथ न मेरा कोई नाता न हिस्सा हैं
बस चाहता हूँ की एक बार वो तुझे देख ले
थोडी गलतफहमिया उनकी भी खुदा दूर तो करे
17th september closing poem
वो उसकी आंखों मे छलकता प्यार भी
तेरी इस अदा को क्या कहे
कभी इकरार भी कभी इनकार भी
मुझे मिला वक्त तो तेरी जुल्फे सुलझा दूंगा
अभी तो ख़ुद वक्त से उलझा हूँ
एक दिन वक्त को उलझा दूंगा
दिल ये अब कुछ मानता नही
उदयपुर तेरे सिवा अब ये कुछ जानता नही
पहले मेरे पास होती थी हजारो बातें करने को
आजकल तेरे सिवा कोई बात हो वो दिन कैलंडर मे आता नही
हर पल तुझे याद करना तुझे सोचना तुझे बेंतेहा प्यार करना
और मेरे उदयपुर तेरे लिए वो सब कुछ करना
जो किसे ने कभी किया ना हो किसी ने कभी सोचा ना हो
17th september opening - big FM anniversary message
16th september opening poem
वो नाम मेरा ही तो हैं
(गौर फरमाइयेगा )
हथेली पर जिसे लिख कर मिटाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
रोज़ मेहंदी जिसके नाम की रचाती हो
वो नाम मेरा ही तो हैं
रोज़ फ़ोन पर करती हो जिससे घंटो बातें बहुत सारा गुस्सा
वो नाम मेरा ही तो हैं
सुन के जिसको पलके तेरी झुक जाती हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे होठो मे जो छुप कर कांप रहा हैं
तेरी धड़कन मे दिल धड़कने के साथ गूंज रहा हैं
गूंज कर हर बार मेरा पूछ रहा हैं पता
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरी पूजा मे तेरी हर दुआ मे
झिलमिलाती शाम मे
हर उस सुबह मे
वो बारिश की बूंदों मे
वो नाम मेरा ही तो हैं
अपना नाम जिससे जोड़ा हैं तुने
दुनिया की हर रस्म को तोडा हैं तुने
वो नाम मेरा ही तो हैं
तेरे नाम के बिना अधुरा सिर्फ़ एक नाम हैं
वो नाम मेरा ही तो हैं
15th september closing poem
तो कहाँ होता इस RJ अंकित का जहान
शिकवा न करता कोई जिंदगी से
दिल का नाता न होता
ना दिल देता कोई पैगाम
गर नसीब को नही होती दर्द की पहचान
मायूस न हो कोई मुक़द्दर अपनी तन्हाई से
(कभी कभी बहुत अकेला लगता हैं न ! सब लोग साथ होते हैं तब भी )
मायूस न हो कोई मुक़द्दर अपनी तन्हाई से
हया नही हैं हमे अपनी बदनामी से
गर नसीब सबके दो चार होते
तो हम जैसे दीवाने भी हज़ार होते
हम तो तेरे लिए सिर्फ़ एक ही हैं
तुझे प्यार करने वाले शायद
थोड़े बदमाश पर थोड़े नेक ही हैं
गर खुदा मिल जाए तुम्हे
(मुझे तो मिलेगा नही )
गर खुदा मिल जाए तुम्हे
मुझे तो मिलेगा नही
क्यूंकि मैं खुदा को मानता नही
प्यार हैं जिंदगी इस प्यार के सिवा कुछ जानता नही
तो कहना इतना अपने उस खुदा से
की हमेशा उसका ध्यान रखे
हमेशा उसे खुश रखे
दे देना दुःख मुझे चाहे कितने भी
पर उस पर कभी दुःख का एक बादल भी न फिरे
Sunday, September 14, 2008
15th september - opening poem
लहजे की मालामात से हो रहा था सब ज़ाहिर
रो रही थी वो शिद्दत से
लडखडाते लफ्जों से कर रही थी बातें
तुम कहाँ थे इतने दिन
रोज़ फ़ोन करती थी
बात जो तुमसे करनी थी
जो बहुत ज़रूरी था
वो रह जाता हैं
प्यार मे हमेशा ऐसा ही हो जाता हैं
प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन तडपती थी
(गौर फरमाइयेगा )
कि प्यार तेरा ठुकराकर सारा दिन उलझती थी
तु बात करता नही मैं फ़ोन पर नम्बरों से उलझथी थी
(ये smile कैसी भाई )
चैन ही नही मिलता जागती हूँ सुबह भर मे
नींद ही नही आती
और ये बात किसी को बतायी नही जाती
जो नही कहा अब तक तुमसे अब ये कहती हूँ
सच मे तुमसे बहुत प्यार करती हूँ
सुनते ही इतना फ़ोन उसका कट गया
मैंने फ़िर से फ़ोन किया
पता चला हॉस्पिटल के किसी बूथ का नम्बर था
और अब उसकी साँसे थम चुकी थी
Friday, September 12, 2008
13th september closing poem
कभी सारे जहाँ को हँसाने को दिल चाहता हैं
कभी छुपा लेता हैं गमो को भी दिल किसी कोने मे
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता हैं
कभी रोता नही मन किसी भी बात पर
कभी यूँही आंसू बहाने को जी चाहता हैं
कभी लगता हैं अच्छा आकाश मे उड़ते परिंदों को देखना
कभी एक सागर की लहर से भी जी घबराता हैं
कभी उन बहती लहरों के साथ भागने का दिल करता हैं
तो कभी सागर किनारे किसी कोने मे बैठ किसी को याद करने को दिल करता हैं
कभी बेगाने अपने हो जाते हैं
कभी अपने बेगाने से नज़र आते हैं
कभी सपने देखने से भी दिल डरता हैं
और कभी सपनो के लिए जान देने को दिल करता हैं
(आप लोगो ने अपनी ज़िन्दगी मे जो भी सोचा हो , जिसके लिए भी आप सुबह उठने से रात सोन तक खूब सारी मेहनत करते हो चाहे वो आपका करियर हो चाहे वो आपका सपना हो चाहे शहर मे खूब सारा नाम कमाने का हो तो अंकित बस यही कहेगा की आप लोगो को god बिल्कुल इंतज़ार न कराये और जिस चीज़ का ख्वाब आप लोग देख कर उठते हैं वो आपको आज ही मिल जाए )
13th september opening poem
हर बार कह कर किसी को याद किया नही जाता
प्यार करना तो अक्सर प्यार वाले ही जानते हैं
(गौर फरमाइयेगा उदयपुर )
प्यार करना तो अक्सर प्यार वाले ही जानते हैं
प्यार करके किसी को भुलाया नही जाता
अब एक और पल जुदाई का काटा नही जाता
(ये उनके लिए जिनके हमदम एक दुसरे सेमिल नही पाते महबूब कहीं दूर रहते हैं )
कि अब एक पल और जुदाई का काटा नही जाता
और सच तेरी यादो के सहारे अकेले अकेले अब जिया नही जाता
लोग रोज़ मोहब्बत की बातें करते हैं
और कुछ रोज़ मोहब्बत के नाम से हंसते हैं
पर सच कहू अपनी मोहब्बत का मजाक और देख नही जाता
कि जहाँ भी हो जल्दी से पास आ जाओ
क्यूंकि सच अब कलम उठा कर हमसे कुछ लिखा नही जाता
तुमसे प्यार किया आंखों आंखों मे इकरार किया
तु आंखों मे सब पढ़ कर हर बात का जवाब देती हैं
तेरी बस इस अदा पर ना पूछ
इस दीवाने ने क्या क्या वार दिया
12 th september closing poem
इन आंखों मे ख्वाब मे भी सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
(मैं busy थी मैं busy था काम बहुत हैं वक्त मिलते ही बताता हूँ )
ना आ सकेगा तो जालिम इत्तेला तो दे
ताकि ये दिल तेरी यादो को भुला तो दे
अपनो को भुलाकर सब कुछ छोड़कर
एक तुझ पर ही ऐतबार किया हैं
सच कहू मैंने इंतज़ार से भी ज्यादा तेरा इंतज़ार किया हैं
तू कांटो पर भी सुलाता तो शिकवा न करते
न शिकायत करते न किसी को रुसवा करते
ज़िन्दगी मांगी जो किसी ने हमसे
ज़िन्दगी ने मन ही मन सही पर प्यार किया हैं
और इस दीवाने ने हर शाम की तरह सिर्फ़ तेरा इंतज़ार किया हैं
(i wishकी आप अपनी ज़िन्दगी मे किसी का भी इंतज़ार ज्यादा न करे उदयपुर जिसको भी आप चाहे वो आपको जल्दी से मिल जाए क्यूंकि ये इंतज़ार बहुत ख़राब होता हैं इंतज़ार सपनो के पुरा होने का , इंतज़ार मोहब्बत के घर आने का , इंतज़ार नए दोस्त के मिलने का , इंतज़ार ये कहने का की मैं उसे कह पाऊंगा या नही वो मुझे मिलेगी या नही ,आप सबसे यही कहूँगा यही wish करूँगा की आप लोग जो भी सपना देखते हैं आँख खोलने से सोने तक वो जो godजी हैं न वो आपको जल्दी से दे दे )
12th september opening poem
और हौले से मुझे किसी ख्वाब की दुनिया मे ले जाता हैं
भूल जाते हैं दर्द सारे , गिले शिकवे भी
(गिले शिकवे होते रहते हैं टाइम नही हैं फ़ोन नही करते )
कुछ खुशी कुछ लम्हे वो प्यार के ऐसे दे जाता हैं
वो कौन जिससे हैं चंद मुलाकातों का रिश्ता
और इस चंद मुलाकातों मे वो अपना दिल सम्हालकर
मेरा दिल ले जाता हैं
माना वक्त की भागदौड़ मे मैं उसे जानता नही
पर ये बताओ मोहब्बत मे मोहब्बत करने का वक्त किसे मिल पाया हैं
और वो मेरे ख्यालो मे मुझे भी इंतज़ार करवाता हैं
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
(अबके पूछने वाला हूँ )
मिलेगी अब तो ज़रूर पूछ लूँगा
प्यार मे क्या कोई दीवाना कहलाता हैं
आँखें उसकी बहुत बातें करती हैं
वो होठो से चुप रहने का दिखावा करती हैं
हाँ लगता हैं इस दीवाने को वो थोड़ा सा पसंद करती हैं
पर जुबां से कुछ कहती नही आंखों से सब कुछ कहती हैं
Thursday, September 11, 2008
11th september closing poem
तो वो आपसे हो
हम बहुत तडपे अब तडपने की अदा किसी कि हो
तो वो आपसे हो
तमन्ना हैं साँसों की
आप बन गए ज़िन्दगी
आज बारिश मे भीग जाऊ
अगर बारिश तेरे घर के सामने हो
बारिश का बरसना और थामना गर आपसे हो
मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
(वो कहती हैं तुम दीवाने हो गए हो बहुत दीवाने हो ऐसे मत किया करो अच्छा नही लगता लोग क्या कहेंगे )
कि मैं दीवानापन कभी छोडू न अपना
गर ये दीवानापन आपसे हो
सज़ा प्यार की चाहे जो दे देना
पर मौत मेरी हो तो बस आपसे हो
इश्क अगर कोरे कागज़ पर फडफडाना चाहे
ये उंगलिया अगर कलम उठाकर कुछ लिखना चाहे तो लिख ना पाए
बस लिखे वही जो कुछ आपसे हो